भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश के चिकित्सा अधिकारियों और कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चिकित्सा अधिकारियों से की जा रही चार स्तरीय वेतनमान की वसूली के आदेश को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जहां कर्मचारी की गलती नहीं है, वहां वसूली का आदेश देना उचित नहीं है।इससे डाक्टरों को बड़ी राहत मिल गई। अब 26 अगस्त 2008 के अनुसार सभी भुगतान, पे फिक्सेशन, पेंशन आदि दिए जाएंगे।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य सरकार ने चिकित्सा अधिकारियों, दंत सर्जनों और विशेषज्ञ संवर्ग में कार्यरत अधिकारियों को चार स्तरीय वेतनमान में 6 वर्ष पूरे होने पर उच्च वेतनमान देने का आदेश जारी किया। दिनांक 23.05.2009 के परिपत्र में यह प्रावधान किया गया था कि चतुर्थ स्तरीय वेतनमान निर्धारित सेवा अवधि पूरी होने पर देय होगा, लेकिन वित्तीय लाभ 01.04.2015 से बढ़ाया जाएगा। निर्धारित अवधि के पूरा होने की तिथि से 26.08.2008 के बीच की अवधि काल्पनिक वेतन निर्धारण के लिए पात्र होगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पाया गया कि परिपत्र दिनांक 23.05.2009 को गलत तरीके से जारी किया गया था और वित्त विभाग के अनुमोदन के बिना जारी किया गया था ,ऐसे में 23 मई 2009 को आदेश जारी कर वेतनमान का भुगतान किया और फिर 30 मई 2012 को विभाग ने आदेश जारी करते हुए 23 मई 2009 के आदेश को निरस्त कर दिया और राज्य सरकार ने ब्याज के साथ भुगतान की गई अधिक राशि की वसूली का आदेश दिया।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा केबिनेट की मंजूरी व वित्त विभाग की अनुमति के बाद चिकित्सा अधिकारियों से चार स्तरीय वेतनमान की 195 करोड़ की राशि ब्याज सहित वापस लेने का आदेश दिया था। यह राशि दो हजार डाक्टरों से वापस ली जाना थी। राशि वापस लिए जाने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर जबलपुर हाई कोर्ट की एकल पीठ ने डॉक्टरों से की जा रही वसूली को लेकर जारी आदेश को निरस्त कर दिया तो शासन ने युगल पीठ में अपील दायर कर दी।
इसके बाद युगल पीठ ने शासन की वसूली को वैध ठहराते हुए एकल पीठ के आदेश में बदलाव कर दिया, जिसके बाद 30 मई 2012 के अनुसार शासन ने वसूली शुरुआत कर दी, ऐसे में मेडिकल आफिसर एसोसिएशन सहित अन्य डाक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की । डॉक्टरों ने तर्क दिया गया कि आदेश गलत है, वेतनमान राशि को वापस नहीं लिया जा सकता है। वही मध्य प्रदेश सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता सौरभ मिश्रा ने तर्क दिया कि यह राशि बड़ी है।
इस शुक्रवार को जस्टिस एमआर साह व जस्टिस बीवी नागरथ्ना की पीठ ने सुनवाई करते हुए वसूली के आदेश में बदलाव कर दिया। डॉक्टरों को जिम्मेदार ना ठहराते हुए इसे विभाग/राज्य की गलती मानी और कहा कि दिनांक 23.05.2009 का परिपत्र जारी किया था जिसके तहत वर्ष 2012 में वापस लेने तक एसोसिएशन के सदस्यों को कुछ लाभ दिए गए थे। ब्याज के साथ भुगतान की गई अतिरिक्त राशि की वसूली का आदेश देने में उचित नहीं था, विशेष रूप से, जब यह बताया जाता है कि डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने और वसूली उनके पेंशन/पेंशनरी लाभों से होगी । तथापि, साथ ही उनका वेतन निर्धारण एवं पेंशन दिनांक 26.08.2008 के आदेशानुसार होना चाहिए।