भोपाल।
प्रदेश में अब वकीलों को हड़ताल करने से पहले हाईकोर्ट की अनुमति लेनी होगी।मध्यप्रदेश सरकार ने एडव्होकेट एक्ट 1961 के प्रावधानों में संशोधन कर दिया है। सरकार ने इस संबंध मे आदेश भी जारी कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि हड़ताल पर जाने से पूर्व वकीलों को हाई कोर्ट की अनुमति लेनी होगी। प्रदेश व्यापी हड़ताल के लिए चीफ जस्टिस से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। जिला स्तर होने वाली हड़ताल के लिए जिला न्यायाधीश अनुमति दे सकेंगे। यह फैसला हड़ताल के दौरान काम- काज प्रभावित होने के चलते लिया गया है।
दरअसल, आए दिन वकीलों के हड़ताल पर जाने से न्यायालय का काम पूरी तरह ठप हो जाता था। साथ ही पीड़ित पक्षों को परेशानी का सामना करना पड़ता था। जिसके चलते इसमें वकीलों की हड़ताल के संबंध में जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। वकील प्रवीण पांडेय ने ये याचिका लगाई थी। इसमें हड़ताल के कारण पक्षकारों को होने वाली परेशानी का ज़िक्र किया गया था। जिसके बाद यह पूरे प्रदेश में अब वकीलों की हड़ताल पर सरकार ने बैरिकेट लगा दिया है। याचिका का निपटारा होने के बाद सरकार ने इस एडव्होकेट एक्ट 1961 की धारा 34 के तहत नया संशोधन कर दिया है। अब जो नई व्यवस्था की गई है उसमें प्रदेशव्यापी हड़ताल के लिए मुख्य न्यायाधीश से इजाज़त लेना ज़रूरी होगा। ज़िला स्तर पर ज़िला सत्र न्यायाधीश इसकी इजाज़त देंगे।सभी अदालतों को सरकार ने आदेश दे दिया है। सरकार के इस फैसले से वकील नाराज़ हैं। उन्होंने इस संशोधन को गलत बताया है और अब वो सरकार के इस फैसले को चुनौती देने की तैयारी में हैं।
दोषी पाए जाने पर होगी कार्रवाई
जो वकील बगैर सूचना के हड़ताल पर जाएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। साथ ही यदि जांच के बाद वकील दोषी पाए जाते हैं, तो वे कोर्ट में पैरवी नहीं कर सकेंगे। यह व्यवस्था प्रदेश के समस्त न्यायालयों के लिए है। नोटिफिकेशन के अनुसार वकीलों को अपनी मर्जी के बजाय हाईकोर्ट से अनुमति लेकर हड़ताल करनी होगी। नोटिफिकेशन मध्यप्रदेश की समस्त खंडपीठों, जिला न्यायालयों को भेजा गया है। सरकार ने एडवोकेट एक्ट 1961 में संशोधन पश्चात दिया है।