शोर पर मोहन का वार- एन के त्रिपाठी

Bhopal

Bhopal News: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालते ही मोहन यादव ने शोर पर चोट कर अपनी धमाकेदार आमद देने का प्रयास किया है। उनके इस आदेश से मुझे दो कारणों से बहुत प्रसन्नता हुई है।

प्रथम कारण यह है कि अक्टूबर, 2015 में मेरी सेवानिवृत्ति के बाद मध्यप्रदेश सरकार के अटल बिहारी बाजपेयी सुशासन एवं विश्लेषण संस्थान ने मुझे मप्र पुलिस रेगुलेशन तथा मध्य प्रदेश के स्थानीय कानूनों का परीक्षण कर उनमें सुधार के लिए सुझाव देने हेतु नियुक्त किया था। इनमें ‘मध्य प्रदेश संगीत एवं ध्वनि नियंत्रण अधिनियम’ भी सम्मिलित था। अनेक प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों तथा जनता के हर वर्ग के लोगों से विचार विमर्श करने के बाद मैंने एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उसमें मैंने ‘मध्य प्रदेश संगीत एवं ध्वनि नियंत्रण अधिनियम’ की धारा 6(1) में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का समावेश करने का भी प्रस्ताव दिया था। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2005 में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा था कि रहवासी क्षेत्रों में अधिकतम दिन में 55 डेसीबल और रात्रि में 45 डेसीबल तीव्रता पर लाउडस्पीकर बजाया जा सकता हैं। इसी प्रकार वाणिज्यिक क्षेत्र में दिन में अधिकतम 65 डेसीबल तथा रात में 55 डेसीबल पर लाउडस्पीकर चला सकते हैं। औद्योगिक क्षेत्र में यह दिन में 75 डेसीबल तथा रात में 70 डेसीबल अधिकतम तीव्रता पर लाउडस्पीकर चलाया जा सकता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण आदेश भी दिया था कि रात दस बजे से सुबह छह बजे के बीच में कोई भी लाउडस्पीकर नहीं बजा सकेगा। मेरे अनेक प्रस्तावों की तरह इस शोर या कोलाहल पर नियंत्रण के प्रस्ताव पर भी उस समय राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। परंतु हर्ष का विषय है कि नवागंतुक मुख्यमंत्री ने आते ही इसे अपनी प्राथमिकता में लिया है। संभव है कि राज्य शासन इस अधिनियम में संशोधन भी कर दे।

मेरी प्रसन्नता का दूसरा कारण यह है कि अब मुझे कोलाहल से होने वाली व्यक्तिगत परेशानी से छुटकारा मिल सकेगा। अभी साल भर मंदिर, मस्जिद, कभी कथा, धार्मिक चल समारोह और बारात आदि के कारण व्यथित कर देने वाला कोलाहल होता रहता है। यह सर्वविदित है कि कोलाहल विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। इससे हृदय गति एवं श्रवण शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा व्यक्ति के सामान्य व्यवहार में भी परिवर्तन हो सकता है। संभावना है कि मैं अब ध्वनि प्रदूषण से दूर स्वस्थ वातावरण में रह सकूंगा।

श्री मोहन यादव ने सभी मंदिरों और मस्जिदों और डीजे वालों से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुरूप ध्वनि की तीव्रता और समय का ध्यान रखने के निर्देश दिये हैं। सभी जिलों के पुलिस प्रशासन ने शोर पर नियंत्रण करने लिए संबंधित को 7 दिन का समय दिया है और उसके पश्चात ऐसा न करने पर कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। अब सात दिन हो चुके हैं और देखना है कि आगे क्या होता है।

इस लेख के लेखक एनके त्रिपाठी वर्ष 1974 बैच के आईपीएस हैं। मूल रूप से लखनऊ उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। उन्होंने स्पेशल डीजी सीआरपीएफ की भी जिम्मेदारी संभाली है। वे नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो में डीजी रहते रिटायर्ड हुए।


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Shashank Baranwal

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पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है– खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो मैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।

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