नर्मदा घाटी के सबसे बड़े घोटाले में नही हुई कार्यवाही, देखिए किसने लगाए आरोप

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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पत्रकारवार्ता कर गंभीर सरकार पर आरोप लगाए है, इस वार्ता में नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख मेधा पाटकर भी मौजूद थी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि नर्मदा घाटी परियोजना अंतर्गत सरदार सरोवर बांध में एक महा घोटाला हुआ। जिसमें 1600 गरीब किसानों की फर्जी रजिस्ट्री करवाकर करोड़ों रूपयों का भ्रष्टाचार अधिकारियों, कर्मचारियों और दलालों ने किया है।

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उन्होंने बताया कि 2005 से डूब प्रभावित किसानों को वैकल्पिक खेती लायक जमीन नर्मदा ट्रिब्यूनल और पुनर्वास नीति तथा सर्वोच्च अदालत के फैसलों के आधार पर दी जानी थी। जमीन नही दे पाने पर 5 एकड़ सिंचित जमीन खरीदने के लिये 5.58 लाख रूपये का अनुदान घोषित हुआ तो उसमे सैकड़ों फर्जी रजिस्ट्रियां पेश करके राशि निकाली जाने लगी। पुनर्वास के अन्य कार्यो में जैसे मकान के लिये भू-खण्डों का आवंटन जिसमें कई पुनर्वास स्थलों पर परिवर्तन होने लगा और पूनर्वास बसाहटों पर हो रहे सुविधाओं के निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार सामने आने लगा। तब 2007 में नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से म.प्र. उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई। मुख्य न्यायाधीश महोदय ने 21.08.2008 के आदेश से न्यायाधीश श्रवणशंकर झा की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार जांच आयोग गठित किया।

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इस आयोग के समक्ष चार मुद्दों पर चले कार्य में भ्रष्टाचार की जांच सम्मिलित रही, जिस पर 7 साल के कार्यकाल में हजारों लोगों से सुनवाई की। स्थल निरीक्षण तथा बड़े पैमाने पर कागजातों की खोज के साथ, याचिकाकर्ता तथा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की गवाही प्रस्तुत की गई। जनवरी 2016 में प्रस्तुत हुए झा आयोग की रिपोर्ट में सभी मुद्दों पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई। इस रिपोर्ट पर म.प्र. शासन ने उच्च न्यायालय में सुनवाई एवं कार्यवाही का विरोध किया। सर्वोच्च अदालत नेे जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत उच्च न्यायालय को 900 से अधिक पन्नों की रिपोर्ट और संलग्नक कागजातों को विधान मंडल के समक्ष रखने पर मजबूर किया। जुलाई 2016 से यह रिपोर्ट विधान मंडल के पटल पर रखी गई। न कभी इस पर बहस हुई। न कोई कार्यवाही की रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पेश की गई। नर्मदा बचाओ आंदोलन के द्वारा संघर्ष करते हुए हजारों परिवारों को मुआवजा दिलाने का कार्य किया गया है लेकिन राज्य सरकार सैकड़ों परिवारों के साथ धोखाधड़ी करने वाले दलालों और भ्रष्टाचार करने वाले कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नही कर रही है। यह आपराधिक कृत्य सरकार ने लंबित कर रखा है।

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पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और मेधा पाटकर ने आरोप लगाया है कि यह करोड़ों की बरबादी म.प्र. शासन द्वारा कार्यवाही नही करके भ्रष्टाचार को शह दी गई है। सरदार सरोवर जैसे राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवादित, विश्व बैंक से विनाशकारी बनाये गये और फंड रोक दिये बड़ी परियोजना के संबंध में हुए एक घोटाले को शासन 7 साल की जांच रिपोर्ट के बावजूद कैसे दबा सकती है? विधान मंडल से लेकर संसद तक यह घोटाला उजागर होना चाहिये। म.प्र. ने जनप्रतिनिधियों के अलावा विस्थापित ही नही, प्रदेश और देश की जनता के समक्ष राज्य सरकार को देना होगा। जवाब के साथ हर दोषी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की गई तो म.प्र. की सरकार को ही दोषी माना जायेगा जो गरीब किसानों मजदूरों को न्याय दिलाने की जगह भ्रष्टाचार करके उनका हक डकारने वालों को बचा रही है।

 झा आयोग के निष्कर्ष
1- झा आयोग के समक्ष सरदार सरोवर पुनर्वास के कई मुद्दें जांच के लिये सम्मिलित रहे। हर मुद्दे पर गहरी जांच हुई करीबन 10 हजार लोगों की सुनवाई की और 7 सालों के बाद जनवरी 2016 में रिपोर्ट पेश किया।
2- पहला मुद्दा था, वैकल्पिक जमीन खरीदने के लिये दी गई 5.58 लाख रूपये अनुदान देने से जो भ्रष्टाचार हुआ था, उसमें हुई फर्जी रजिस्ट्रियों में कुल 1589 रजिस्ट्रियां फर्जी साबित हुई। इसमें विस्थापित फंसायें गये, अधिकारियों और दलालों की सांठ-गांठ से बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है। दलालों, कुछ अधिकारियों के नाम भी रिपोर्ट में दिये गये है। कोई कार्यवाही नहीं होने से आज भी 1589 प्रकरणों में जमीन के मूल मालिकों का कब्जा होते हुए भी, नामांतरण फर्जी रूप से विस्थापितों के नाम हुआ है। इससे सैकड़ों मूल मालिक हैरान है चूंकि उन्हें उनके मालिकाना हक एक प्रकार से छीने जाने से किसानी योजना के लाभ या ऋण नहीं मिला है। इस संबंधी कुछ किसानों की शिकायतें दाखिल करने के बावजूद संबंधित अधिकारी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे है। सभी 1589 फर्जी रजिस्ट्रियों पर एक साथ रद्द करने की कार्यवाही जरूरी है।
3- जिन 200 दलालों की सूची झा आयोग ने रिपोर्ट में घोषित की है उन पर सख्त कार्यवाही के लिये शासन से जांच की जरूरत नही समझी है जबकि तत्काल कार्यवाही होना चाहिए।
4- रजिस्ट्रियां पूर्णतः फर्जी होते हुए भी की गई, जिसमें राजस्व विभाग, रजिस्ट्रार कार्यालय एवं नर्मदा सरदार सरोवर पुनर्वास कार्यालय के कर्मचारी/अधिकारी सम्मिलित होने की हकीकत झा आयोग की रिपोर्ट से स्पष्ट है।
5- मकान के लिये भू-खण्ड आवंटन में प्रक्रिया भू-राजस्व संहिता के तहत होते हुए भी आधी अधूरी होने से आवंटित भू- खण्डों में परिवर्तन भी भ्रष्टाचार का आधार बन गया। भू-खण्ड आवंटन की कानूनी प्रक्रिया का पूर्ण तरिके से उल्लंघन होने से सारे अधिकारी इन अनियमित्ताएं एवं भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार है। इस निष्कर्ष के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई और विस्थापितों को काफी कुछ भुगतना पड़ा है।
6- आजीविका अनुदान के भुगतान संबंधी सही रिकोर्ड नही रखा गया। जिससे अनुदान आजीविका संबंधी साधन खरीदी पर ही खर्च होना साबित हो सकता था। इस वास्तविकता को भ्रष्टाचार ही कहकर आयोग ने निष्कर्ष निकाला । हजारो परिवारों को आजीविका अनुदान का भुगतान हुआ है। लेकिन उसमें पाई गई अनियमितता संबंधी कोई कार्यवाही, किसी को दोषी भी न करार करते हुए, टाली गई है। न ही जांच आगे बढ़ाई गई है, न ही गलत भुगतान या उससे दलालों ने निकाला गया हिस्सा वसूला गया। शासकीय तिजोरी पर यह डाका होते हुए भी किसी को दोषी करार नही किया गया।

झा आयोग की रिपोर्ट के प्रमुख तथ्यः-

• कमीशन ने अपनी 144 पन्नों की रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपी थी।
• माननीय सर्वोच्च न्यायालय की मंशा के अनुरूप विस्थापितों का पुनर्वास नही किया गया।
• पुनर्वास नीति की मंशा के अनुरूप हितग्राहियों को जमीन के बदले जमीन नही दी गई।
• जो जमीनें लैंड पूल में रखी गई थी, उनमें या तो कब्जा था या बंजर थी।


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Harpreet Kaur

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