बिना गुस्से के अपने जिद्दी बच्चे को सिखाएं अनुशासन, अपनाएं ये आसान टिप्स

Parenting Tips: क्या आप भी अपने बच्चों को तमीज सिखाने के लिए कभी गुस्से में आकर उन पर हाथ उठाते हैं? अगर हां, तो जान लीजिए कि यह तरीका बच्चों के मानसिक विकास के लिए हानिकारक हो सकता है।

भावना चौबे
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Parenting Tips: आजकल की व्यस्त जिंदगी में माता-पिता के पास बच्चों के साथ समय बिताने के लिए ज्यादा मौका नहीं मिल पाता है। जिससे बच्चों में अनुशासन की कमी देखने को मिलती है। अगर आपके बच्चे आपकी बात नहीं सुनते हैं और आप समस्या से परेशान है, तो यह लेख आपके लिए मददगार हो सकता है।

बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए डांट फटकार या मारपीट की जरूरत नहीं होती, बल्कि समझदारी और प्यार भरे तरीके से उन्हें सही रास्ता आसानी से दिखाया जा सकता है। अक्सर कई माता-पिता जब बच्चे उनकी बात नहीं सुनते हैं तो उन्हें मरते हैं या फिर डांटते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए इसकी बजाय सकारात्मक तरीकों से उन्हें अनुशासन से खाना ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।

खुद एग्जांपल बनें

जब बात बच्चों को अनुशासन में रखने की आती है, तो सबसे पहले आपको खुद अनुशासन का पालन करना चाहिए। बच्चों के माता-पिता और आसपास के लोगों से सीखते हैं। इसलिए अगर आप खुद अनुशासन में रहेंगे तो बच्चे भी उसे अपनाएंगे। उदाहरण के लिए समझते हैं, कि अगर आप समय पर खाना खाते हैं, समय पर सोते हैं, और जिम्मेदारियां का बखूबी पालन करते हैं तो बच्चे भी यह आदतें अपने आप सीखेंगे।

बच्चों के साथ शांति से बातें करें

बच्चों के साथ शांति से बात करना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह उनके मानसिक विकास में मदद करता है। जब आप प्यार हो समझ से बात करते हैं तो बच्चा अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से व्यक्त कर पता है और उसकी सुनने की क्षमता भी बढ़ती है। बच्चों के साथ बातचीत करते समय उन्हें बिना डांटे या चिल्लाए उनकी गलतियों के बारे में समझना चाहिए।

गलतियों से सिखाएं

बच्चों को गलती करने पर मारना पीटना समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि इससे बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके बजाय उन्हें उनकी गलती के परिणाम समझने चाहिए और सही रास्ता दिखाना चाहिए। जब आप बच्चे को समझाते हैं, कि उनकी गलतियों से क्या नुकसान हो सकता है तो यह उन्हें अपनी जिम्मेदारियां समझने में मदद करता है।

बच्चों को आत्मनिर्भर बनाएं

बच्चों को छोटे-छोटे काम खुद करने की छूट देने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं। जैसे कि अपनी किताबें, खिलौने या कपड़े खुद चुनना या फिर खुद से छोटे काम जैसे पानी लाना या कमरा व्यवस्थित करना। जब बच्चों को अपनी पसंद और फैसलों का अधिकार मिलता है, तो वह खुलकर अपनी बात रखते हैं और अपने विचारों को व्यक्त करने में अधिक सहज महसूस करते हैं।

 


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भावना चौबे

भावना चौबे

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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