Mother’s Day Special : मां सिर्फ एक शब्द नहीं अपने आप में पूरा संसार है। ये वह शक्ति है जिसे ईश्वर ने सृष्टि के सृजन का भार सौंपा है। आपने अक्सर फिल्मों में सुना होगा कि भगवान हर जगह हर वक्त मौजूद नहीं रह सकता इसलिए उसने मां को बनाया। और हो भी क्यूं न, मां ईश्वर से ज्यादा करुणामयी है, मां ही है जो एक अबोध बालक में अच्छे बुरा के ज्ञान का संचार करती है, मां ही है जिसकी सीख बच्चे को जीवन के हर पहलू से अवगत कराती है। इसलिए मां को प्रथम गुरु का दर्जा भी दिया गया है।
मां भूल गई मां की बातें?
प्रथम गुरु का दर्जा कोई उपाधि नहीं मां के लिए एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। मां के द्वारा सिखाई गई सीख न केवल नन्हे बालक के चरित्र का निर्माण करती है बल्कि राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करती है। लेकिन क्या हो जब मां खुद ही अपनी मां की सिखाई गई हर बात को भूलकर उसे रूढ़िवादी और old fashion बोलकर छोड़ दे? क्या हो जब ममता बच्चे के लिए वरदान नहीं अभिशाप साबित होने लगे। आज की पीढ़ी को देखकर कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है। इस पीढ़ी में अब न तो मां चप्पल का खौफ बचा है और न ही मां के आंचल का मोह।
मां तुम कहां खो गई हो?
एक समय था जब मां बच्चे को सही और गलत का फर्क बताने के लिए दिन दिन भर भूखा तक रखती थी, भले ही बाद में खुद सौ सौ आंसू रोए पर गलती पर उसे दम भर कूटती थी, दुलार और संस्कार दोनों बराबर मात्रा में दिया करती थी। लेकिन आज मां का वह रूप वह प्रजाति मानो कहीं लुप्त हो गई है। आज बच्चे गलती करें तो मां उसको सही सीख देने की बजाए आठों हाथ से उसके संरक्षण में लग जाती है, बाप से झूठ बोलती है, संसार से झूठ बोलती है। और यहीं से शुरू होता है राष्ट्र के निर्माता का पतन।
एक बच्चा सबसे अच्छा के इस कॉन्सेप्ट ने भी मां की बच्चों के प्रति ममता को अति ममतमयी कर दिया है। आज की मां बच्चे के गलती होने के बावजूद स्कूल के जाकर प्रिंसिपल और टीचर से लड़ने को तैयार हो जाती है। एक समय था जब बच्चे बाहर लड़ाई करके आते थे और घर पर बताने में डरते थे कि कहीं मां मारे नहीं, लेकिन आज बच्चा जब मां को बताता है तो मां खुद ही लड़ने के लिए पहुंच जाती है। इस बात को देखकर बच्चा न केवल खुश होता है बल्कि गलत को सही होता हुआ देखकर उसकी गलत करने की प्रवृत्ति को भी एक नया आयाम मिल जाता है। वह बच्चे आगे जाकर वह हर कदम उठाने के लिए प्रेरित हो सकता है जो उसके लिए गलत हो। डांट मार से दूर अति दुलार और अति प्रेम से पले हुए बच्चे कमज़ोर नीव लेकर बड़े होते हैं, न दुख सह पाते हैं न दर्द सह पाते हैं न गुस्सा सह पाते है और फिर ऐसी परिस्थितियों में वह कदम उठाते हैं जो मां की ममता को हमेशा के लिए मार देता है।
राष्ट्र को तुम्हारी जरूरत है मां
इस भागती जिंदगी में बेशक किसी भी मां के लिए यह मुमकिन नहीं कि वह हर समय अपने बच्चे के आगे पीछे घूमती रहे लेकिन कुछ जिम्मेदारियां ऐसी होती है जिनसे चाह कर भी पीछा नहीं छुटाया जा सकता है। उस जिम्मेदारी का यथावत निर्वहन न केवल जरूरी है बल्कि मजबूरी है। यह बात सड़क पर घूमते , बुढ़ापे में मां को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ते .स्टेटस के चक्कर में मां को नीचा दिखाते, सरेआम लड़कियों को छेड़ते, बड़ों का अपमान करते बच्चों को देखकर और भी पुख्ता हो जाती है कि मां अब चप्पल उठाने का समय फिर से आ गया है, भविष्य को बचा लो मां, राष्ट्र को बचा लो मां…