भोपाल। वो इंतजार की कशिश, अंगुलियों से फिराना, लबों से चूमना, खूशबू से तर हो जाना,वो सबसे छुपा छुपा के लफ्जों के जादू में खो जाना, याद आ गया आज फिर वो चिट्ठियों का जमाना। एक समय था जब लोगों को डाकिए का इंतजार रहता था। क्योंकि घर के बाहर रहने वाले लोगों से संपर्क करने का एक अकेला माध्यम डाक-तार ही था। पर अब वो जमाना बीत गया। लेकिन गोविंदपुरा में रहने वाले केके जैन का भारतीय पोस्ट इकठ्ठा करने का शौक लगातार बरकरार है। केके के पास पोस्ट का एक विशाल संग्रह है। भारत की आजादी के पहले और बाद का आखिरी पोस्टकार्ड भी उनके पास सुरक्षित रखा हुआ है।
जीवन में कुछ नया करने की चाह ने हमेशा ही केके जैन को प्रेरित किया है। मप्र वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन में एजीएम के पद से रिटायर्ड केके, बचपन से ही राष्ट्रीय पोस्ट कार्ड इकठ्ठा कर रहे हैं। इनके पास आजादी के पहले वर्ष 1856 में चले महारानी विक्टोरिया, जार्ज सीरीज से लेकर अंतिम पोस्ट कार्ड तक मौजूद है। केके के संग्रह में पौन आना, आधा पाना,तीन पाई, तीन पैसा, 5 पैसा, 10 पैसा, 15 पैसा, 25 पैसा,50 पैसा कीमतवार भी पोस्ट कार्ड शामिल है। इतना ही नहीं इनके पास देश की सभी भाषाओं और सामाजिक सरोकार वाली शासकीय योजनाओं, संस्थानों, महत्वपूर्ण लोगों के विज्ञापनों वाले एक हजार से अधिक पोस्टकार्ज भी इनमें शामिल है।