भोपाल। सुमित जोशी।
जार्ज बर्नार्ड शा ने कहा था कि कठिनाई और विरोध वह देशी मिट्टी है, जिसमें शौर्य, आत्मविश्वास व नेतृत्व करने की क्षमता का विकास होता है। यही बात भोपाल के प्रवीण कुमार पर लागू होती, जिनको अन्ना आंदोलन व खुद की नेतृत्व क्षमता ने दूसरी बार आम आदमी का नेता बनाया है। उन्होने आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़कर दोबारा दिल्ली की जंगपुरा सीट पर जीत हासिल कि।
उन्होने भाजपा के मनिंदर धीर को 20,400 वोटो से हराया है। वैसे तो प्रवीण कुमार मूल रूप से मध्य प्रदेश स्थित बैतूल के एक छोटे से कस्बे आठनेर के रहने वाले हैं। लेकिन वहां से अपनी स्कूलिंग खत्म करने के वाद वह आगे की पढ़ाई के लिए वह भोपाल आ गए।
उनके साथ उनके पिता भी भोपाल आ गए। घर के खर्च के साथ बेटे की पढ़ाई संभालने के लिए उन्होंने भोपाल के पुल बोगदा पर पंक्चर टायर रिमोल्ड करने की छोटी सी दुकान खोल ली, हालांकि आज भी उनके पिता पंढरीनाथ देशमुख वहां पर दुकान चलाते हैं।
2011 में अन्ना आंदोलन से जुड़े
प्रवीण कुमार ने भोपाल के TIT कॉलेज से वर्ष 2008 में MBA किया था। जिसके बाद नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गए। दिल्ली में तीन साल नौकरी करने के बाद वह 2011 में अन्ना आंदोलन से जुड़ गए। आंदोलन से वह इतने प्रभावित हुए कि बोविस वायरलैस नेटवर्क जैसी बड़ी कंपनी से रिजाइन देकर पूरी तरह से अपनेआप को आंदोलन में झोंक दिया।
आंदोलन खत्म हुआ तो AAP के साथ जुड़ गए
अन्ना आंदोलन खत्म होने के बाद जब अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई तो वह इसमें शामिल हो गए।उनकी नेतृत्व क्षमता से प्रभावित होकर 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रवीण कुमार को आम आदमी पार्टी ने जंगपुरा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में प्रवीण कुमार को जीत हासिल हुई और वह विधायक बने। पिछली सरकार में वह शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के ओएसडी थे। इस दौरान उन्होंने स्कूल दाखिलों में डोनेशन रोकने के लिए अहम कदम उठाए। इस के साथ ही नर्सरी एडमिशन में डोनेशन रोकने के लिए हेल्पलाइन नंबर लॉन्च करने में भी उनकी भूमिका अहम रही थी।