रमजान के पाक महीने की शुरूआत हो गई है और यह शायद पहला ऐसा रमजान का महीना होगा जब लोग इफ्तारी के समय एक साथ इकठ्ठा होकर रोज़ा नहीं खोल पाएंगे। लेकिन लोगों की सुरक्षा के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना भी बेहद जरूरी है। हम सभी जानते हैं कि रोजे के समय फलों की खपत सबसे ज्यादा होती है, लेकिन लॉकडॉउन के चलते फिलहाल सब बंद है। ऐसे में रोजेदारों को फल मिलना एक बड़ा टास्क है और अगर फल मिल भी रहे हैं तो वो आसमान छूते दामों पर मिल रहे हैं। इस बात से बिल्कुल इत्तेफाक रखा जा सकता है कि इस बार लॉकडॉउन का असर रमजान के माह पर भारी पड़ने वाला है।
फल के दाम हुए दुगुने
लॉकडॉउन के चलते हर चीज की आवक-जावक बुरी तरह प्रभावित हुई है क्योंकि खेतों से मंडियों तक सामान ही नहीं पहुंच पा रहा है। और जो थोड़ा बहुत समान पहुंच भी रहा है वो कालाबाजारी के कारण दुगने दामों पर लोगों को मुहैया कराया जा रहा है। ऐसे में अगर फल की बात करें तो दुगने से भी ज्यादा दाम में फलों को बेचा जा रहा है, केले और संतरे जैसे फल 60 से 80 रूपए किलों के भाव से मिल रहे हैं। ऐसे में रोजेदारों के लिए मुश्किल खड़ी होना लाज़मी है। हालांकि प्रशासन की तरफ से आश्वास्त कराया गया है कि रोजेदारों को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आएगी
खजूर हुआ मंहगा
हर बार रमजान के महीने में खजूर की मांग बढ़ जाती है क्योंकि खजूर से रोजा इफ्तार करना अच्छा माना जाता है। पर लॉकडाउन के इस समय में खजूर के दाम आसमान छू रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण है कि इस बार सऊदी , ईरान, इराक और दूसरे देशों से खजूर नहीं आ सका है जिस कारण जो खजूर स्टॉक में है वो ही मार्किट में लोगो को महंगे दामों में उपलब्ध हो रहा है। मंहगाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जो कीमिया नाम का ईरानी खजूर 200 रूपए किलों तक बिका करता था वो इस लॉकडॉउन के समय 300 रूपए किलो बिक रहा है। बता दें इस्लाम धर्म में खजूर का बहुत महत्व है, कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद साहब अपना रोजा खजूर से ही खोला करते थे इसलिए रोजे को खजूर और पानी से खोलना सबाब माना जाता है। हर साल रोजे से पहले सऊदी अरब से भी खजूरों की खेप आती थी, लेकिन इस बार वो भी नहीं हो पाया है और इसलिये भी खजूर की उपलब्धता और दाम दोनों ही परेशान करने वाले हैं।