भोपाल| मध्य प्रदेश में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है और बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूल बसों में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम की जांच शुरू हो गयी है| वहीं परिवहन आयुक्त शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने स्कूल प्रबंधन और बस संचालकों के लिए एडवाइजरी जारी की है| न्यायालयों, केंद्र और राज्य सरकार और परिवहन विभाग द्वारा समय समय पर जारी निर्देशों पर आधारित एडवाइजरी जारी की गई है, जिसमे स्कूल बस संचालक द्वारा स्कूल बस में कई मापदंडों की पूर्ति आवश्यक की गई है।
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया कि केन्द्रीय मोटरयान नियम 1989 के प्रावधान अनुसार बसों के आगे और पीछे बड़े व स्वच्छ अक्षरों में ‘स्कूल बस‘ लिखा होना अनिवार्य है, वहीं बसों का रंग पीला होगा, इसके अलावा यदि स्कूल बस किराए की है, तो उस पर आगे एवं पीछे ‘विद्यालय सेवा‘ में आन स्कूल ड्यूटी लिखा जाए। विद्यालय द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली किसी बस में निर्धारित सीटों से अधिक संख्या में बच्चे नहीं बैठाए जाए। प्रत्येक बस में अनिवार्य रूप से प्राथमिक चिकित्सा के लिए फस्र्ट एड बाक्स की व्यवस्था की जाए।
![Transportation-Commissioner-issued-the-advisory-for-school-bus](https://mpbreakingnews.in/wp-content/uploads/2020/01/291920191843_0_shailendrashrivastav.jpg)
जरूरी निर्देश
-बसों की खिड़कियों में आड़ी पट्टियां ग्रिल अनिवार्य रूप से लगाई जाए
-बस में अग्नि शमन यंत्र की व्यवस्था हो
-बस में स्कूल का नाम और टेलिफोन नम्बर बड़े अक्षरों में अवश्य लिखा जाए
-बस के वाहन चालक को भारी वाहन चलाने का न्यूनतम 5 वर्ष का अनुभव होना चाहिए
-पूर्व में ट्रैफिक नियमों का दोषी ठहराया गया नहीं होना चाहिए
गतिनियंत्रक 40 किमी प्रति घंटा की स्पीड पर फिक्स हो
स्कूल बसों के लिए जारी एडवाइजरी के अनुसार केन्द्रीय मोटरयार नियम 1989 के नियम-17 के प्रावधान अनुसार बस में वाहन चालक के अतिरिक्त एक अन्य वयस्क व्यक्ति भी हो। यदि बस में छात्राएं भी हो तो उस बस में महिला अध्यापक अथवा सहायिका की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। बच्चों के बस्ते रखने के लिए सीट के नीचे जगह होनी चाहिए। बसों में नियमानुसार दो दरवाजे प्रवेश एवं निर्गम हों तथा आपातकालनी खिड़की लगी हो। बस में गतिनियंत्रक 40 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड पर फिक्स किया हुआ लगा होना चाहिए। बसों के दरवाजों पर लगे ताले ठीक स्थिति में होना चाहिए। किसी भी शिक्षक अथवा पालक को बस में सुरक्षा मुआयना करने की दृष्टि से जाने की सुविधा हो। यह सुनिश्चित हो कि स्कूल बस के चालक का नेत्र परीक्षण तथा इस दृष्टि से स्वास्थ्य परीक्षण कि वह मादक द्रव्यों के सेवन का आदी तो नहीं है नियमानुसार 6 माह के अंतराल में वाहन चालक की डाॅक्टरी परीक्षण कराया जाना आवश्यक है।
कौन सा बच्चा किस वाहन से स्कूल आ रहा ब्यौरा रखे स्कूल
परिवहन आयुक्त शैलेन्द्र श्रीवासतव के अनुसार स्कूल प्रबंध द्वारा स्कूल के स्वामित्व की अथवा अनुबंधित स्कूली वाहनों में भी मापदंडों की पूर्ति आवश्यक की गई है। स्कूल प्रबंधन द्वारा यह संपूर्ण ब्यौरा रखा जाए कि कौन सा बच्चा किस वाहन से स्कूल आ रहा है अथवा स्कूल से जा रहा है। स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाले समस्त वाहनों के आवश्यक दस्तावेज जैसे ड्राइविंग लाइसेंस, पुलिस वैरिफिकेशन वाहन का रजिस्ट्रेशन, फिटनेस, परमिट, बीमा, पीयूसी, प्रमाण पत्र का एक सेट आवश्यक रूप से रखा जाए। स्कूली वाहन के रूप में एलपीजी से संचालित वाहन का प्रयोग सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत विस्फोटक है। अतः स्कूल प्रबंधन द्वारा यह निगरानी रखी जाएग कि स्कूल का कोई भी बच्चा एलपीजी संचालित वाहन से स्कूल न जाए और ऐस होने पर उसका दायित्व होगा कि इस संबंध में तत्काल पुलिस प्रशासन एवं परिवहन विभाग को सूचित किया जाए। ऐसा न करने पर दुर्घटना की स्थिति में संपूर्ण जवाबदेही स्कूल प्रबंधन की होगी। स्कूल प्रबंधन यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक वाहन से निर्धारित संख्या में बच्चों का परिवहन किया जाए।
भारत के नियंत्रक एवं महालेख परीक्षक द्वारा वर्ष 2016-17 में शिक्षा संस्थानों में संलग्न यात्री बसों की जाएं में पाया गया है कि ट्रस्ट-समिति के नाम से पंजीकृत वाहन उसके द्वारा संचालित स्कूल-कालेज में यदि विद्यार्थियों को लाने-लेजाने का कार्य करती है, तो शैक्षणिक संस्था के वाहन मानकर रियायती दर से किया गया करारोपण सही नहीं मानते हुए प्रायवेट सेवायान की दर से करारोपण किए जाने का आडिट आक्षेप निर्मित किया है। यदि स्कूल वाहन ट्रस्ट के नाम से है, तो उसका अनुबंध स्कूल के प्राचार्य के नाम से अनुबंध कराया जाना आवश्यक है।