भोपाल। भाजपा कार्यकाल में ओहदेदारों से खाली रही मप्र उर्दू अकादमी के खैरख्वाहों की एक बड़ी जमात इसकी जिम्मेदारी संभालने के लिए आगे आ चुकी है। कांग्रेसी रसूख रखने वाले कई चेहरों ने अपनी सफाई इसके लिए करना शुरू कर दी है। चाहतमंदों की दौड़ के बीच सरकार ने अपने पसंदीदा लोगों की तरफ नजर दौड़ाना भी शुरू कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय शायर मंजर भोपाली से लेकर कांग्रेस के मजबूत स्तम्भ पूर्व सांसद अजीज कुरैशी के नाम इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर माने जा रहे हैं। निगम, मंडलों के साथ अन्य मुस्लिम इदारों में जल्दी होने वाली नियुक्ति के दौर में उर्दू अकादमी के भाग्य का फैसला होने की उम्मीद भी की जा रही है।
प्रदेश में भाजपा के सतत तीन कार्यकाल के बीच यहां मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इसके बाद अकादमी की जिम्मेदारी सलीम कुरैशी और मिर्जा जाफर बेग के हवाले भी की गई। लेकिन उर्दू के फरोग के लिए होने वाले कामों से बेदखल होती जा रही अकादमी को शिवराज के आखिरी कार्यकाल में ही खाली ही छोड़ दिया गया। इस दौरान मप्र उर्दू अकादमी के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से छिटककर मप्र संस्कृति विभाग के अधीन चले जाने से भी यह कवायदें रुकी रह गईं। लोकसभा चुनाव से पहले इस बात की कवायदें शुरू हुई थीं कि अकादमी को पुन: अल्पसंख्यक कल्याण के अधीन लाकर इसके जिम्मेदारों की नियुक्ति की जाएगी, लेकिन चुनाव बाद यह प्रयास आगे नहीं बढ़ पाए और अकादमी अब तक जिम्मेदारों के बगैर ही संचालित हो रही है। कांग्रेस सरकार ने इसमें महज इतना बदलाव किया है कि लंबे समय से अकादमी में सेवाएं दे रहीं सचिव नुसरत मेहदी के स्थान नए सचिव के रूप में डॉ. हिसाम उद्दीन फारुखी को पदस्थ कर दिया है।
शुरू हुईं अध्यक्ष की कवायदें
पिछले कुछ दिनों से इस बात की चर्चाएं तेज हो चुकी हैं कि उर्दू अकादमी में अध्यक्ष की नियुक्ति की जाने वाली है। प्रदेशभर से करीब दर्जनभर कांग्रेसी रसूख रखने वाले शायर, नेता, रिटायर्ड और वर्तमान अधिकारी और उर्दू से ताल्लुक रखने वाले लोग इस पद के लिए अपनी जमावट करने में जुटे नजर आ रहे हैं। विभाग का अल्पसंख्यक और संस्कृति के बीच झूलते दायरे के चलते किसी एक नाम पर फिलहाल कोई अंतिम राय कायम नहीं हो पाई है। इस बीच यह भी कहा जा रहा है कि यहां अध्यक्ष की नियुक्ति का रास्ता इसके अल्पसंख्यक कल्याण के अधीन पहुंचने के बाद ही खुल पाएगा।
मंजर और अजीज के नाम सबसे आगे
कांग्रेस सरकार के वजूद में आने के बाद से ही इस बात की चर्चाएं आम थीं कि मप्र उर्दू अकादमी के अध्यक्ष पद के लिए अंतर्राष्ट्रीय शायर मंजर भोपाली के नाम पर अंतिम मोहर लग सकती है। मंजर का उर्दू और शायरी से ताल्लुक और उनकी निर्विवाद छवि ने उनके लिए यह रास्ता खोला है। कांग्रेस के आला नेताओं से उनकी नजदीकियां और उनका पार्टी के लिए योगदान भी उनके लिए यह पद आसान करता नजर आ रहा है। गौरतलब है कि भाजपा शासनकाल में इस बात की चर्चाएं आम हुई थीं कि सरकार मंजर भोपाली को इस पद के लिए राजी करने में जुटी है, लेकिन मंजर ने पार्टी से बेरुखी दिखाते हुए इस पद को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। उर्दू फरोग से ताल्लुक रखने वाले लोगों का मानना है कि अकादमी में किसी उर्दू के जानकार और यहां की कार्यप्रणाली से वाकिफ व्यक्ति को जिम्मेदार बनाया जाता है तो इदारे से बेहतर काम की उम्मीदें की जा सकती हैं। इसके चलते वे मंजर भोपाली के नाम को सबसे ऊपर रखते हुए उनके नाम का समर्थन करते नजर आते हैं। इस बीच पिछले कुछ दिनों से यह भी चर्चाएं आम हैं कि संस्कृति मंत्री डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ ने संभवत: पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी के नाम को इस इदारे के लिए आगे लाने की सहमति दे दी है। बताया जा रहा है कि इस पद पर पहले भी सेवाएं दे चुके अजीज कुरैशी ने भी इस नियुक्ति के लिए रजामंदी दे दी है। लेकिन इस नियुक्ति को लेकर आमजन का मानना है कि दो राज्यों के राज्यपाल और सांसद जैसे सम्मानित पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके अजीज कुरैशी की नियुक्ति उनके लिए सम्मान से ज्यादा निचले पायदान पर लाने जैसा निर्णय कहा जाएगा। उनका कहना है कि अजीज कुरैशी कांग्रेस में सम्मानित लोगों की श्रेणी में रखे जाते हैं, ऐसे में उनके लिए मप्र उर्दू अकादमी की जिम्मेदारी संभालना पिछले अनुभवों और पदों के लिहाज से बहुत ही छोटा पद साबित होगा।
जश्र-ए-उर्दू से पहले मिले जिम्मेदारी
संभवत: फरवरी माह में होने वाले मप्र उर्दू अकादमी के बड़े आयोजन जश्र-ए-उर्दू से उर्दू फरोग की कई कवायदें की जाती हैं। कई चरणों में होने वाले इस आयोजन से प्रदेशभर के साहित्यकारों के अलावा देशभर के बुद्धिजीवी जुड़ते हैं। वरिष्ठ उर्दू पत्रकार मुशाहिद सईद खान का कहना है कि सरकार को इस गरिमामयी आयोजन से पहले अकादमी के जिम्मेदार की नियुक्ति कर देना चाहिए। ताकि वह अपने अनुभव और रसूख से इस आयोजन को नई ऊंचाईयां दे सके। अंग्रेजी अखबार के जर्नलिस्ट जफर आलम का मानना है कि उर्दू से जुड़ी इस संस्था में ऐसे शख्स को पाबंद किया जाना चाहिए, जो उर्दू फरोग की कवायद को आगे बढ़ा सकें। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नियुक्तियों ने यहां पहले भी निजाम को कालिख पोती है, इसलिए यहां नियुक्ति में इस बात का ख्याल रखा जाए कि यहां सियासत से जुड़े लोगों को जगह न मिले।