वन विभाग की बड़ी लापरवाही, 42 मोरों की मौत के बाद मचा हड़कंप

Atul Saxena
Published on -

मुरैना, संजय दीक्षित।  वन विभाग के अधिकारियों की बड़ी लापरवाही सामने आई हैं जिसमें यदि वे पिछले दिनों हुई  राष्ट्रीय पक्षी मोरों की मौत के बाद कार्यवाही कर लेते तो आज 42 मोरों की मौत नही होती। आज सोमवार को 42 मोरों का बानमौर में पीएम कराया गया है।

गौरतलब है कि शनिचरा वनक्षेत्र के दोनसा गांव में करीब 42 मोरों की संदिग्ध हालातों में मौत हो गई। मोरों के शिकार की घटनाएं पिछले तीन वर्ष पहले भी इसी इलाके के आसपास सामने आई थीं। इसके बाद फिर से इतनी बड़ी संख्या में मोरों की मौत होने से वन विभाग के अधिकारियों में हड़कंप मच गया। मोरों की मौत की वजह शिकार बताई जा रही है। शिकार की आशंका को देखते हुए वन विभाग ने मोरों का पीएम बानमौर पशु अस्पताल में कराया गया। जहां तीन डॉक्टरों की टीम के द्वारा बिसरे के सैंपल जांच के लिए सुरक्षित सागर,जबलपुर और ग्वालियर तीन जगह भेजे गए है।

ये भी पढ़ें – World Music Day: म्यूजिक में जादू है! सिर्फ कला नहीं बल्कि ये है सबसे सुलभ चिकित्सक

दोनसा गाँव के ग्रामीणों ने बताया कि 16 तारीख को करीब 12 मोरों की मौत हो गयी थी उसके बाद रविवार को करीब 30 मोरों के शव खेतों में पड़े मिले। सूचना के बाद वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। ग्रामीणों ने बताया कि मोरों की मौत या तो प्यास से हुई है या फिर उनका शिकार हुआ है। मरने वाली मोरों में 13 नर व 29 मादा पक्षी शामिल हैं। हर साल जंगली इलाकों में मोरों के लिए वन विभाग पानी के मटके रखवाया करता था। इस साल वन विभाग ने जंगल में ऐसा कुछ भी नहीं किया है। जिसके चलते हो सकता हैं कि मोरों की प्यास से मौत हुई होगी या फिर जहरीला दाना खाने से मौत हुई होगी। जहां मोरों की मौत हुई है वहां खेत के पास गंदे पानी का नाला निकल रहा था उसी के पास किसी ने मोरों को मारने के लिए जहरीले चावल और गेहूं के दाने डाल दिये थे जिसे खाने के बाद मोरों की मौत हुई हैं।

ये भी पढ़ें – उत्सव में बदला वैक्सीनेशन महाअभियान, सेंटर्स पर लगी लम्बी लम्बी लाइनें, पार हुआ लक्ष्य

इस मामले में मोरों की सामूहिक मौत को शिकारियों से जोड़कर भी देखा जा सकता है। क्योंकि इससे पहले इसी इलाके के आसपास मोरों की मौत जहरीले दाने को खाकर हुई थी, जो शिकारियों ने यहां फैलाए थे। इसके बाद इसी तरह से बानमोर के पहाड़ी इलाके में मोरों का शिकार हुआ था। उस समय करीब 35 मोरों की मौत हुई थी। वन विभाग के अधिकारियों ने मामले को गंभीरता से नहीं  लिया वरना  आज इतने मोरों की मौत नहीं  होती। अगर समय रहते शिकारियों को पकड़ लिया जाता तो राष्ट्रीय पक्षियों का शिकार नहीं होता।  इसमे कहीं न कहीं आला अधिकारियों की बड़ी लापरवाही सामने देखने को मिली हैं। कुछ दिन पहले हुई 12 मोरों की मौत के बाद वन विभाग कुम्भकर्ण की नींद से जाग जाता तो शायद 42 और  मोरों की मौत न होती। अब देखना होगा कि वन विभाग के अधिकारी शिकारियों के खिलाफ क्या कार्यवाही करते हैं या फिर राष्ट्रीय पक्षी की मौत के मामले को ठंडे बस्ते में डालकर गहरी नींद में सो जाते हैं।

ये भी पढ़ें – सिंधिया का कांग्रेस पर बड़ा हमला, नाम बदलना है तो अपनी पार्टी का नाम बदल लें


About Author
Atul Saxena

Atul Saxena

पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

Other Latest News