गरीबों के हक के अनाज की कालाबाजारी, प्रशासन दे रहा जांच कराने दिलासा

Gaurav Sharma
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खंडवा/ ओंकारेश्वर, सुशील विधाणी। गरीब बीपीएल परिवारों को वितरित किए जाने वाले पीडीएस के चावल की कालाबाजारी का भंडाफोड़ हुआ है। फिलहाल पीडीएस का चावल कैसे एक निजी मछली कारोबारी तक पहुंचा अनाज, इसका खुलासा नहीं हो पाया है। एसडीएम पुनासा मामले में जांच करने का कहते रहे।

मछली पालन केन्द्र से हो रहा गरिब के निवाला चावल की कालाबाजारी

दरअसल, ओमकारेश्वर गणेश नगर स्थित फॉरेस्ट नर्सरी के पास एक निजी तालाब में मछलियों को खिलाने वाले भोजन के रूप में गरीबों को दिया जाने वाला सरकारी चावल का स्टाक पाया गया है। यह लगभग 15 से 20 कुंटल चावल मछली तालाब के पास के बने रूम में स्टाक कर रखा गया था। गरिबों के हक के अनाज के संबंध में जब मछली पालन कर रही माधुरी यादव निवासी इंदौर से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उपरोक्त चावल उन्होंने भागीरथपुरा इंदौर के आसपास रहने वाले गरीब लोगों से खरीदा है। एसडीएम पुनासा चंदर सिंह सोलंकी को सारे मामले की जानकारी दी गई तो मात्र औपचारिकता दिखाते हुए उन्होंने कहा कि मैं उक्त पूरे मामले की जांच करवाता हूं और चावल कहां से आया है यह दिखाता हूं। लेकिन इस ओर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

वहीं पूरे मामले को लेकर नायाब तहसीलदार उदय मंडलोई से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा मैं अभी छुट्टी पर हूं। पूरा मामला संदिग्ध है और यह सरकारी प्रशासनिक कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह है कि आखिर कालाबाजारी या किन माध्यमों के द्वारा गरीबों का यह चावल इस तरह के निजी मछली तालाब में पहुंच रहा है। वहीं जब जिला खाद्य अधिकारी सुनील नागराज से जब बात करने के लिये उनके मोबाइल पर संपर्क करना चाहा तो किया तो सिर्फ घंटिया बजती रही।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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