ग्वालियर।अतुल सक्सेना।
नगर निगम प्रशासक की कुर्सी संभालने के अगले ही दिन संभाग आयुक्त द्वारा शहर के लोगों पर सफाई का उपभोक्ता शुल्क लगाए जाने के फैसले का अब चौतरफा विरोध हो रहा है। व्यापारियों ने से देने से इंकार करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है वहीं नगर निगम प्रशासक ने शुल्क को जरूरी बताते हुए वापस लेने से इंकार कर दिया है।
31 जनवरी को नगर निगम प्रशासक बने संभाग आयुक्त एमबी ओझा ने नगर निगम आयुक्त संदीप माकिन एवं अन्य अधिकारियों से चर्चा के बाद उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जो दो साल से अटका था और जिसे परिषद दो बार वापस भी कर चुकी थी। प्रशासक ने सफाई का उपभोक्ता शुल्क शहर के लोगों पर थोप दिया। घोषणा होते ही इसका विरोध शुरू हो गया। व्यापारियों की संस्था चेंबर ऑफ कॉमर्स ने से जन विरोधी और शहरवासियों पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाला बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की और मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह, के साथ सरकार में ग्वालियर का प्रतिनिधित्व कर रहे खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी, मंत्री लाखन सिंह के अलावा स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर, कांग्रेस विधायक मुन्ना लाल गोयल, प्रवीण पाठक और भाजपा विधायक भारत सिंह और निगम प्रशासक एमबी ओझा को पत्र लिखकर इसे वापस लेने की मांग की।
जब किसी ने पत्र का कोई जवाब नहीं दिया उसके बाद चेंबर पदाधिकारियों ने इसपर रणनीति बनाने के लिए एक बैठक की जिसमें प्रशासक एमबी ओझा, विधायक मुन्ना लाल गोयल और प्रवीण पाठक को बुलाया गया । बैठक में चेंबर अध्यक्ष विजय गोयल, मानसेवी सचिव डॉ प्रवीण अग्रवाल सहित अन्य पदाधिकारियों और अलग अलग बाजारों से आये व्यापारियों ने इसका पुरजोर विरोध किया। व्यापारियों का तर्क था कि जब संपत्ति कर के साथ समेकित कर के रूप में सफाई का शुल्क लिया जा रहा है तो एक अतिरिक्त शुल्क सफाई का उपभोक्ता शुल्क क्यों वसूला जा रहा है ये गलत है। व्यापारियों ने चेतावनी दी कि इस कर को कोई नहीं देगा नगर निगम को इसे वापस लेना होगा चाहे हमें इसके लिए सड़क पर आंदोलन क्यों ना करना पड़े।
व्यापारियों के इस विरोध का साथ कांग्रेस विधायक मुन्ना लाल गोयल और विधायक प्रवीण पाठक ने भी दिया। विधायकों ने कहा कि नगर निगम पहले विकास और काम करके दिखाये उसके बाद शुल्क वसूले। पहले से ही इस नाम पर शुल्क लिया जा रहा है तो ये न्यायोचित नहीं हैं। उधर व्यापारियों और विधायकों के विरोध के बावजूद नगर निगम प्रशासक एमबी ओझा ने स्पष्ट किया कि स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए अनिवार्य होने के कारण इस शुल्क को लगाना अनिवार्य है वरना शहर की रैंकिंग खराब हो जायेगी इसलिए इसे वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन व्यापारियों के साथ चर्चा कर इसकी दरें और वसूली के तरीके मे संशोधन किया जा सकता है। हालांकि व्यापारियों ने कहा कि 2014 में भी इसे लगाने का प्रस्ताव आया था तब शहरवासियों के विरोध के कारण इसे वापस लेना पड़ा था आज भी हमे ये स्वीकार नहीं है। बहरहाल नगर निगम।
प्रशासक अपनी जगह अड़े हैं और व्यापारी अपने तर्क के साथ खड़े है और आंदोलन का मन बना चुके हैं। अब देखना ये होगा कि परिणाम क्या सामने आते हैं। क्योंकि जो भी परिणाम होंगे उसका असर आने वाले नगर निगम चुनावों में देखने को अवश्य मिलेगा ।