डबरा, डेस्क रिपोर्ट। एक समय की बात है की डबरा अपनी मिठास के लिए पूरे देश में पहचाना जाता था, इस शहर के विकास के किस्से यूं थे कि जब भारत वर्ष में लोग बिजली आने का कई दिन तक इंतजार करते थे तब यहां शुगर फैक्ट्री में 24 घंटे बिजली पानी की व्यवस्था थी। प्राथमिक चिकित्सा की बात करें तो आस पास के कई जिलों से बेहतर यहां स्वास्थ सुविधाएं थीं। शुगर फैक्ट्री जब तक चली तब तक डबरा के विकास का पहिया घूमता रहा।आज डबरा के पुराने लोग जब बीते दिनों को याद करते हैं तो उनके चेहरे और शब्दों में सिर्फ मायूसियत ही होती है।
भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी शहर में आगे बढ़ रहे हैं और विकास की बात तो शहर केवल पिछड़ता जा रहा है। आए दिन लड़ाई झगडे की वारदातें, सड़कों पर गंदगी, वाहनों का जाम और प्रशासन की नाकामयाबी इस शहर की पहचान बनती जा रही है। एक समय पूरे प्रदेश में अपनी पहचान रखने वाली डबरा नगरपालिका तो मानो कुंभकरण की नींद में सोगयी है जिसे ना तो शहर की अव्यवस्था दिखती है, ना ही नगरपालिका के कामों में होता हुआ भ्रष्टाचार। बीच सड़क पर लगे हुए ठेले, सर्विस रोड को घेरकर दुकानदारों द्वारा किया जा रहा काम, जगह जगह गंदगी के ढेर, जगह जगह खुदी हुई सड़कें अव्यवस्थित ट्रैफिक और भड़ता हुआ अतिक्रमण मानो अब आम बात हो चुकी है।
शहर के व्यस्ततम चौरहों पर गुमटियां अवैद्य अतिक्रमण के रूप में रखकर उन्हें संकीर्ण कर दिया गया है जिससे आए दिन गंभीर दुर्घटनाएं होने का खतरा बना रहता हैं। शहर में मेंटेनेंस के नाम कई घंटो के लिए बिजली गुल रहती है, और बावजूद इसके रोज़ाना बिना कारण बताए किसी न किसी क्षेत्र की बिजली एक या उससे अधिक घंटों के लिए गुल ही मिलती है। आपको बता दें डबरा क्षेत्र से पानी निकासी का एक मात्र स्रोत रामगढ़ नाले को लगातार वैध अवैध निर्माण कर संकीर्ण किया जा रहा है जो भविष्य में किसी भयावह त्रासदी का संकेत देता है।
कहते हैं प्रशासन पस्त जनता मस्त , कुछ ऐसा ही आलम डबरा में साफ तौर पर देखा जा सकता है। शहर के फुटपाथों का उपयोग दुकानदारों द्वारा सामग्री रखने में किया जा रहा है जिससे पैदल या साइकिल से चलने वालों को मुख्य मार्ग पर चलना पड़ता है। जनता के प्रतिनिधि की बात हो या पुलिस के अधिकारियों या नगरपालिका के अधिकारियों की ,ऐसा प्रतीत होता है सभी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है।
गत वर्षों में शहर के लिए न जाने कितनी ही योजनाएं आईं, कई सौ करोड़ो रुपयों की यह योजनाएं केवल राजनेताओं के उद्बोधन और प्रचार प्रसार तक ही सीमित रह गईं।अमृत योजना, मास्टर प्लान जैसी योजनाएं आईं तो सही पर कभी लागू न हो सकीं। जो शहर एक समय जिला बनने की दौड़ में सबसे आगे भाग रहा था आज विकास की दौड़ से बाहर होता जा रहा है। प्रधानमंत्री जी के स्वच्छ भारत के सपने की बात करें या विकास की या जनता की सुरक्षा यह शहर और इसके आला अधिकारी हर सपने को ठेंगा दिखाते हुए नजर आते हैं।