अस्पताल में रात बिताई ऊर्जा मंत्री ने, सुबह उठकर मरीजों के पैर दबाये, चाय पिलाई

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर (Energy Minister Pradyuman Singh Tomar) अपने अलग अंदाज और अलग कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। खुद को जनता का सेवक कहने वाले मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर हमेशा कुछ ऐसा अलग करते हैं कि वो मीडिया की सुर्खियां बन जाता है। कल सोमवार को अतिक्रमण विरोधी मुहिम में पीड़ित लोगों के बीच पहुंचकर उन्होंने इस्तीफा देने, उन्हें गाली देने, लाठी डंडे से मारने की बात करते हुए कहा था कि मैं वही करूँगा जो जनता के हित में होगा और फिर दोपहर में सिविल अस्पताल हजीरा को नई सौगात दी एवं नेत्र शिविर का शुभारम्भ किया।

ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर अपनी विधानसभा “ग्वालियर विधानसभा” में स्थित सिविल  अस्पताल हजीरा में लगातार आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं बढ़ा रहे हैं। सोमवार को उन्होंने सिविल अस्पताल हजीरा को 3 नई बड़ी सौगातें दी।  ऊर्जा मंत्री ने 80 लाख की लागत से नवनिर्मित आँखों के उपचार के लिए ऑपरेशन थिएटर और ब्लड डायलीसिस यूनिट सहित मेकेनाइज लाउंड्री का लोकार्पण किया।  इस अवसर पर उन्होंने अस्पताल में 10 दिवसीय मोतियाबिंद शिविर का किया शुभारम्भ भी किया।

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शिविर का शुभारम्भ करने के बाद ऊर्जा मंत्री रात को सिविल अस्पताल पहुंच गए और उन्होंने वहीं मरीजों के बीच रात्रि विश्राम किया। सुबह जब मंत्री जी उठे तो जिन मरीजों का ऑपरेशन हुआ था उन सभी का हालचाल जाना, उनकी तकलीफ पूछी और अपने हाथों से चाय दी और बिस्कुट खिलाये।

जब ऊर्जा मंत्री मरीजों से बात कर उनकी तकलीफ पूछ रहे थे तभी एक बुजुर्ग महिला ने कहा कि उनके पैर में दर्द हो रहा है, इतना सुनते ही उन्होंने उस बुजुर्ग महिला के पैर दबाने लगे, महिला थोड़ी झिझकी और पैर दबाने से मना करने लगी तो उन्होंने जवाब दिया एक बेटा क्या अपनी मां के पैर नहीं दबा सकता(MP Energy Minister Pradyuman Singh Tomar presses feet of female patient in hospital), इसके बाद महिला निरुत्तर हो गई।

आपको बता दें कि सिविल अस्पताल हजीरा में 10 दिवसीय निःशुल्क मोतियाबिंद शिविर आयोजित किया जा रहा है जो 24 नवम्बर तक चलेगा। शिविर में प्रत्येक दिन 30 से 40 मरीजों का ऑपरेशन नि:शुल्क किया जाएगा।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ.... पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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