Maha Shivratri 2024, Achaleshwar Mahadev Temple Gwalior : महाशिवरात्रि पर्व धूमधाम से पूरे मध्य प्रदेश में भी मनाया जा रहा है, भगवान भोलेनाथ के भक्त शिवालयों में जाकर जलाभिषेक से लेकर अन्य कई तरह से अभिषेक कर शिव शम्भू को प्रसन्न करने के जतन कर रहे हैं जिससे महादेव उनकी मनोकामना पूरी करें। ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में रियासतकालीन कई मंदिर हैं जिनकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली है यहाँ आने वाले भक्ति की हर इच्छा भगवान पूरी करते हैं। यहाँ हम आपको अचलेश्वर महादेव मंदिर की उस कहानी के बारे में बता रहे है जिसे सुनकर आपको भी आश्चर्य होगा।
ग्वालियर में वैसे तो बहुत से शिव मंदिर हैं इनमें कुछ ऐसे हैं जो ऐतिहासिक हैं और इनकी महत्ता इतनी है कि दूसरे शहरों के लोग भी ग्वालियर आकर इन शिव मंदिरों के दर्शन करते हैं। पहाड़ी पर स्थित गुप्तेश्वर मंदिर, ग्वालियर किले की तलहटी में स्थित कोटेश्वर महादेव मंदिर, मोटे महादेव (हजारेश्वर) मंदिर और बीच सड़क पर विराजे अचलेश्वर महादेव मंदिर उन विशेष शिव मंदिरों में शामिल हैं जिनके बारे में मान्जयता है कि यहाँ भगवान शिव साक्षात उपस्थित हैं।
राजा की सवारी में व्यवधान डालता था वट वृक्ष
ग्वालियर के पूर्व महाराजा सिंधिया के महल से कुछ दूरी पर स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी एक ऐसी कहानी है जो सामान्य तौर पर लोग स्वीकार नहीं करते जबकि ये सत्य है, उस समय के लोगों ने इसे अपनी आँखों से देखा और आज तक ये बात इस मंदिर से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाराजा सिंधिया की सवारी जब महल से निकलकर गोरखी देव स्थान के लिए जाती थी कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में एक वट वृक्ष पड़ता था जो उनकी सवारी में व्यवधान डालता था लेकिन महाराज उसे नजरंदाज कर देते थे।
वट वृक्ष हटवाया तो जमीन से निकला शिवलिंग
एक दिन उन्होंने अपने मंत्रियों की सलाह पर उस वट वृक्ष को कटवाने का आदेश दिया, महाराज के मजदूरों ने वट वृक्ष को काटा तो नीचे एक गोल सा पत्थर दिखाई दिया। एक सामान्य पत्थर समझकर मजदूरों ने इसे निकालने की कोशिश की तो उन्हें ये शिवलिंग के रूप में दिखाई देने लगा तो बात राजा तक पहुंची, उन्होंने इसे श्रद्धा पूर्वक निकालने और फिर बीच सड़क से हटाकर अन्य स्थान पर स्थापित करने का आदेश दिया।
मजदूर असफल , हाथियों की ताकत भी फेल, हिले नहीं अचलनाथ
राजा के आदेश पर मजदूरों ने खुदाई शुरू की लेकिन शिवलिंग का दूसरा छोर दिखाई नहीं दिया उल्टा वहां से तेज जलधारा निकलने लगी। जब मजदूर असफल रहे तो राजा ने हाथी भेजे और लोहे की जंजीर बांधकर शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया लेकिन हाथी की ताकत भी फेल हो गई। बताते हैं कि उसी रात भगवान भोलेनाथ ने राजा को सपना दिया कि मैं जहाँ हूँ वहीं रहूँगा , मुझे हटाने की चेष्टा नहीं न करो, सपने के बाद राजा ने शिवलिंग को हटाने के प्रयास बंद करवा दिए और उस स्थान पर एक मंदिर बनवाया जिसे अचलेश्वर महादेव मंदिर (अचलनाथ महादेव मंदिर ) नाम दिया गया, हाथियों से खींचने वाली जंजीरों के निशान आज भी शिवलिंग पर देखे जा सकते हैं।
भव्य स्वरुप में स्थापित हो चुका है अचलेश्वर महादेव मंदिर
आज सैकड़ों साल से अचलेश्वर महादेव यहाँ सड़क के पास ही विराजे हैं, पहले यहाँ एक छोटा मंदिर था जिसका स्वरुप समय के साथ बदलता गया, मंदिर की देखभाल के लिए बने अचलेश्वर महादेव ट्रस्ट की देखरेख के बाद मंदिर और भव्य हो गया आज ये मंदिर अपने नए स्वरुप में है, भक्त यहाँ लाखों रुपये दान करते हैं, एक भक्त ने यहाँ कई किलो चांदी दान की जिसके बाद शिवलिंग को चांदी से जड़ा गया जेल्हरी से लेकर शिव दरबार को चांदी से सजाया गया, मंदिर को जयपुर के पत्थर से भव्यता दी जा रही है।
शिवरात्रि पर रात 12 बजे से ही यहाँ लम्बी लम्बी लाइन लगना शुरू हो जाती है, भक्त अपनी बारी का इन्तजार करते है आज भी सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं, भीड़ को देखते हुए दर्शनों के लिए 6 प्रवेश द्वार बनाये गए हैं, तीन अलग अलग रास्तों से लोगों के आने की व्यवस्था है, सामान्य ट्रेफिक को पुलिस ने डाइवर्ट किया है, सभी लोगों को दर्शन हो सकें इसलिए वोलिंटियर्स और पुलिस गर्भगृह में तैनात की गई है जिससे लोग वहां दर्शनों के बाद रुकें नहीं ।
दर्शन करने आ रहे भक्त आराम से 10 से 15 मिनट में दर्शन कर निकल रहे हैं उनका कहना है कि बाबा अचलनाथ हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं , लाखों लोग दर्शन करते है लाखों लोग भंडारा प्रसादी पाते हैं, बहुत से भक्त अचलेश्वर महादेव को छोटे महाकाल भी मानते हैं।
ग्वालियर से अतुल सक्सेना की रिपोर्ट