उपचुनाव 2020 : जिसे पिछला चुनाव हराया उसी से हार गए, दिग्गज भी नहीं दिला पाए जीत

Atul Saxena
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ग्वालियर,अतुल सक्सेना। जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर कांग्रेस (congress)ने कब्जा कर लिया है जबकि एक सीट भाजपा(bjp) को मिली है। ग्वालियर पूर्व(gwalior east) विधानसभा का मुकाबला कांटे का रहा। यहाँ प्रत्याशी वही थे जो 2018 के विधानसभा चुनाव में आमने सामने थे लेकिन दोनों ने पार्टी बदल ली और जीत फिर से कांग्रेस को मिली। यानि भाजपा के मुन्नालाल गोयल(munnalal goyal) उन्हीं सतीश सिकरवार (satish sikawar)से चुनाव (election)  हार गए जिसे उन्होंने पिछला चुनाव हराया था। खास बात ये रही कि सिंधिया, पवैया जैसे दिग्गजों के वोट भी मुन्नालाल गोयल को जीत नहीं दिला सके। इस बार का चुनाव सतीश के पार्टी बदलकर फिर से मैदान में आने के बाद से ही कड़ा माना जा रहा था। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान(chief minister shivraj singh chauhan) सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर(narendra singh tomar) सहित कई दिग्गजों ने मुन्नालाल के लिए बहुत मेहनत की लेकिन मतदाता ने इस बार मुन्नालाल को नकार दिया और सतीश सिंह सिकरवार को विधानसभा पहुंचा दिया।

दिग्गजों का वोट भी नहीं जिता पाया

ग्वालियर जिले की शहरी तीन विधानसभाओं में ग्वालियर पूर्व सबसे बड़ी विधानसभा है। यहाँ कई दिग्गजों के निवास हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया का जय विलास पैलेस, पूर्व मंत्री माया सिंह, पूर्व मंत्री ध्यानेन्द्र सिंह भी पैलेस में ही रहते हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया भी इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। इन सभी ने मुन्नालाल के लिए प्रचार किया । मतदाता से भाजपा के पक्ष में मतदान की अपील की लेकिन इनके वोट और अपील भी मुन्नालाल को जीत नहीं दिला पाई।

पहले राउंड से आगे थे 12 वे राउंड से पिछड़े

2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 17,819 वोटों के बड़े अंतर से सतीश सिकरवार को हराने वाले मुन्नालाल गोयल उप चुनाव में सतीश सिकरवार से मात्र 8555 वोटों से हार गए। अंतर सिर्फ इतना है कि सीट कांग्रेस के खाते में ही रही क्यों 2018 के चुनाव के समय मुन्नालाल गोयल कांग्रेस में थे तो सतीश सिकरवार भाजपा में लेकिन उप चुनाव में दोनों ने पार्टियां बदल ली। गौरतलब है कि मुन्नालाल गोयल ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक नेता हैं उन्होंने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी और भाजपा में चले गए थे और इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उन्हें उम्मीद थी कि वे इस बार चुनाव जीत जायेंगे। मतगणना के की शुरुआत होते ही मुन्नालाल ने पहले ही राउंड से बढ़त बना ली थी उनकी ये बढ़त 12 राउंड तक बनी रही हालांकि बढ़त का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहा। उसके बाद मुन्नालाल पिछड़ना शुरू हुए और आखिर में 8555 वोटों से चुनाव हार गए।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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