शहर में बढ़ता जा रहा जंगली बन्दरो का उत्पात, वनविभाग नहीं ले रहा सुध

Gaurav Sharma
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होशंगाबाद/इटारसी,राहुल अग्रवाल। नगर में बंदरों का उत्पात बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण खाने की खोज में जंगली बंदर शहरों की ओर कूच करने लगे है। 8 से 10 बंदरों का झुंड है, जो एक साथ घूमता है, कभी किसी मोहल्ले तो कभी किसी मोहल्ले।

आज सुरजगंज में एक घर में एक साथ कई बन्दर घुस आए। घर वाले डर के कारण बाहर की ओर भागे बन्दरो ने घर में रखे खाने पीने की सामग्री तो लेके गए ही, साथ ही घर की वस्तुओं को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। वहीं वन विभाग कुम्भकर्णी नींद सो रहा है। बहुत सी शिकायतो के बाद भी इनको पकड़ने के लिए किसी प्रकार का अभियान नहीं चलाया गया है।

कभी भी हो सकती है जनहानी

हाईवे पर चहल कदमी करने बाले ये वानर अब शहरों की ओर आने लगे है। पहले इन्हें राहगीरों के द्वारा हाईवे पर कुछ न कुछ खाना दे दिया जाता था, क्योंकि दिन भर चारों तरफ के लोग NH69 से गुजरते है। लॉकडाउन में हाईवे तो सुनसान हो गया साथ ही इन जानवरों का खाने का जुगाड़ भी खत्म हो गया तो ये अब शहरों की ओर आने लगे।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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