जहां सरकारी नुमाइंदे फरमाते है आराम , वहां के कर्मचारियों को नहीं मिल रही पगार

Gaurav Sharma
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इंदौर,आकाश धोलपुरे। शहर की ऐतिहासिक रेसीडेंसी कोठी में बुधवार रात को खड़े हुए हंगामे के बाद अब व्यवस्थाओं पर सवाल उठ रहे है। दरअसल, ये वो रेसीडेंसी कोठी है जहां सरकार के नुमाइंदे और कई राजनेता इंदौर प्रवास के दौरान आराम फरमाते हैं। जरूरत पड़ने पर यहां मीडिया से बातचीत और कई सरकारी महत्वपूर्ण बैठके भी आयोजित की जाती है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि शहर की रेसीडेंसी में आगंतुकों की आवभगत और उनकी हर सुविधा का ध्यान रखने वाले कर्मचारियों के हाल बेहाल है। जिसका ताजा उदाहरण कल रात को कर्मचारियों के हंगामे के बाद देखने को मिला।

यहां काम करने वाले करीब 45 कर्मचारियों को बीते तीन महीने से वेतन नहीं दिया जा रहा है। ये सभी कर्मचारी निजी कंपनी के अधीन कार्य करते है। बंगाल और मध्यप्रदेश के शहडोल, देवास सहित अन्य जिलों से काम करने आये कर्मचारी रेसीडेंसी कोठी में हाउस कीपिंग , साफ सफाई , किचन सहित अन्य काम करते हैं।

निजी कंपनी रतन ग्रुप के 45 मजदूरों ने बीती रात से काम भी बंद कर दिया है। ये सभी कर्मचारी रेसिडेंसी में आने वाले अफसरों और नेताओं की सेवा में दिन रात जुटे रहते है। इधर, कर्मचारियों का आरोप है कि कंपनी प्रबंधन हमे ऐसा खाना देती है जिसे जानवर भी बमुश्किल खा पाए। वही वेतन के नाम पर उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। इधर, कंपनी से जुड़े लोग इस मामले में फिलहाल, कुछ खास जानकारी नहीं दे पा रहे है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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