विधवा बहू पर ससुराल वालों का जुल्म, पहुंची प्रशासन की शरण में 

Atul Saxena
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इंदौर, आकाश धोलपुरे। अक्सर ससुराल में बहू पर अत्याचार के मामले सामने आते रहते हैं, हालाँकि महिला से जुड़ा कानून बन जाने के बाद घरेलू हिंसा के मामलों में कमी आई है बावजूद इसके कुछ लोग आज भी समाज में ऐसे हैं जिन्हें ना समाज की चिंता है और ना कानून का भय, इंदौर प्रशासन के सामने आया विधवा बहू का एक मामला इसका ताजा उदाहरण है।

इंदौर कलेक्ट्रेट कार्यालय (indore district administration) अपनी फरियाद लेकर पहुंची निशा गोस्वामी की आंसुओं से भरी आंखे उसको दी जा रही प्रताड़ना (atrocities on widowed daughter-in-law) को बताने के लिए काफी है। शिकायती आवेदन में निशा ने बताया कि कुछ समय पहले उसके पति ने आत्महत्या कर ली थी। उसकी मौत के बाद से मेरी सास, ससुर, देवर की नजर मेरे मकान पर है जिसे मेरे पति के खून पसीने की कमाई से बनाया है।

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ससुराल वाले मेरे साथ मारपीट करते हैं, मकान को जबरन बेचना चाहते हैं, मेरे सास ससुर देवर मुझे घर से निकालना चाहते हैं, ऐसे में मैं अपने बच्चों को लेकर कहाँ जाऊं। निशा ने उसे और उसके बच्चों को जान का खतरा बताया है।  उसने कहा कि उसने पुलिस थाने में भी शिकायत की लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की।

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महिला पर हुये जुल्मों की कहानी सुनकर अपर कलेक्टर राजेश राठौड़ ने मामले की जांच एसडीएम को जांच सौंप दी और  वैधानिक कार्यवाही के निर्देश दिए। अब देखना ये होगा कि ससुराल की प्रताड़ना झेल रही विधवा बहू की प्रशासन कितनी जल्दी और क्या मदद करता है?

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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