जबलपुर, संदीप कुमार। जबलपुर शहर के यातायात को सुगम बनाने और यहाँ के बाशिन्दों को आसानी से उनकी मंजिल तक पहुँचाने के लिए जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनकरण मिशन के तहत जबलपुर शहर को करीब 11 साल पहले सिटी मेट्रो बस की सौगात मिली थी। करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद शासन की यह महत्वकांक्षी योजना आज कबाड़ हो गई है। 150 बसों में से अधिकतर बसे रखरखाव के अभाव में कबाड़ हो गई हैं जिसके बाद पुनः अमृत योजना के तहत 200 बसे जबलपुर शहर में आने वाली हैं।
कभी शहर की लाइफलाइन थी मेट्रो बस
2010 में जबलपुर शहर को (जेसीटीएएसएल) योजना के माध्यम से 150 मेट्रो बसों की सौगात मिली थी,इस योजना में सरकार ने करीब 23 करोड़ रु. खर्च किए थे। कुछ ही दिनों में मेट्रो बस शहर की लाइफ लाइन बन गई। कम किराये में आरामदायक सफर के चलते लोग इसे पसंद भी करने लगे, पर कुछ साल में ही रखरखाव के अभाव चलते मेट्रो बसें कबाड़ हो गई। आज आलम यह है कि 150 बसों में से सिर्फ 60 बसों का ही संचालन हो रहा है।
कोरोना ने भी थाम दिए मेट्रो बसों के रफ्तार
फरवरी 2020 में जब कोरोना ने मध्यप्रदेश में दस्तक दी थी उसके पहले तक जबलपुर में 100 से ज्यादा मेट्रो बस चल रही थी। उस दौरान मेट्रो बसों में रोजाना 40 हजार से ज्यादा यात्री सफर करते थे। कोरोना संकट से उभरने के बाद जब पुनः जन-जीवन पटरी में आया तो यात्रियों की संख्या घटकर आठ से दस हजार हो गई।
वर्तमान में यह है मेट्रो बसों की स्थिति
60 मिनी मेट्रो हो रही है संचालित
8 से 10 हजार यात्री रोजाना कर रहे है वर्तमान में सफर
40 हजार से ज्यादा यात्री करते थे 2020 फरवरी के पहले तक सफर
69 है छोटी बसे 32 सीटर जिसमे यात्री क्षमता है 42
57 बड़ी बसे जिसमे यात्रियों की क्षमता है 75
116 कुल मेट्रो बसें
अमृत योजना के तहत आई है 11 बसे-55 यात्रियों की क्षमता
कांग्रेस विधायक ने खड़े किए प्रश्नचिन्ह
जबलपुर शहर की लाइफ लाइन कही जाने वाली मेट्रो बस चंद सालों में ही कबाड़ हो गई। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद जब मेंटेनेंस के अभाव में यह बसें कबाड़ा हो गई तो यात्री भी इन बसों में बैठने से डरने लगे। इधर कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना ने मेट्रो बसों के रखरखाव को लेकर नगर निगम पर गंभीर आरोप लगाए हैं। विधायक ने कहा कि नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही के चलते मेट्रो बस कबाड़ हो गई। उन्होंने कहा कि अगर समय पर ठेकेदार बसों की रखरखाव करते तो आज मेट्रो सिटी बसों के हालात ऐसे नहीं बनते।