पंचायत चुनाव: HC ने खारिज की उम्मीदवारों की खर्च सीमा तय करने की याचिका, हस्तक्षेप से इंकार

Pooja Khodani
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MADHYA PRADESH HIGH COURT

भोपाल/जबलपुर, डेस्क रिपोर्ट। पंचायत चुनाव (MP Panchayat Election 2022) से पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने प्रत्याशियों के खर्च सीमा को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है।हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय करने की याचिका खारिज कर दी है और इस पूरे मामले में हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस डी.के पालीवाल की डिवीजन बैंच ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि कोई भी कानून बनाने के सम्बंध में हाई कोर्ट को अधिकार नही है। अब याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।

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दरअसल, नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांताध्यक्ष डा.पीजी नाजपांडे व सामाजिक कार्यकर्ता रजत भार्गव ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि  हाल ही में निरस्त हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उतरे  जिला व जनपद सदस्य व सरपंच, पंच के उम्मीदवारों ने लगभग 250 करोड़ रुपये का व्यय किया था, जिससे स्पष्ट है कि पंचायत चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए प्रत्याशी बिना लिमिट के खर्च करते है, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पंचायत चुनाव में खर्च की अंतिम सीमा निर्धारित नहीं है।

वही लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो  प्रत्याशियों के लिए खर्च की सीमा निर्धारित है। यदि पंचायत चुनाव के प्रत्याशियों के लिए दिन-प्रतिदिन के चुनाव खर्च का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने की शर्त निर्धारित कर दें तो इस इस बेवजह खर्च पर रोक लगेगी। याचिका में यह भी कहा गया था कि पूर्व में हाई कोर्ट के निर्देश पर चुनाव आयोग ने पार्षद चुनाव में अधिकतम चुनाव खर्च सीमा निर्धारित की है। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि प्रत्याशी रोज के खर्चा को ब्यौरा भी पेश करें।

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इस मामले में युगलपीठ ने मध्य प्रदेश सरकार के विधि तथा पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव तथा चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता अमित सेठ ने पैरवी की थी।वही सोमवार को हुई सुनवाई में युगलपीठ ने साफ कहा कि इस संबंध में सरकार को निर्णय लेना है। सरकार की पॉलिसी मैटर में हम दखल नहीं दे सकते। युगलपीठ ने सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया। इस पर अमित सेठ ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट ऐसा कोई कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकता। अब वे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।

 

 


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