एक ही परिवार के तीन सदस्य लहुलुहान मिले,गले पर किया हमला, फैली दहशत 

Atul Saxena
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जबलपुर, संदीप कुमार। जबलपुर के जरोंद गांव में एक दिल दहला देने वाली घटना से समूचा गांव  दहशत में है,घटना में जरोंद गांव में रहने वाले एक ही परिवार के तीन सदस्य लहूलुहान मिले हैं  बताया जा रहा है तीनों  का गला धारदार हथियार से कटा हुआ था। इस घटना में जहां बुजुर्ग महिला की मौत हो गई है तो वहीं उसका बेटा और बहू गंभीर रूप से घायल है जिनका इलाज मेडिकल कालेज में जारी है।

जानकारी के मुताबिक जरोंद गांव  निवासी 75 वर्षीय मोंगा बाई विश्वकर्मा अपने बेटे राजेंद्र उर्फ गुड्‌डा और बहू  रेखा उर्फ अर्चना के साथ रहती है, राजेंद्र के दो बेटे 10 वर्षीय कार्तिक व ढाई वर्ष का बेटा मुन्ना हैं। बुधवार सुबह दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे थे। घर में मोंगा बाई, बेटा राजेंद्र व बहू अर्चना थे। पड़ोसियों ने पुलिस को बताया कि घर से पहले बहू रेखा चीखते हुए बाहर निकली जिसका गला कटा हुआ था और खून बह रहा था। वह चीखते हुए बोल रही थी कि मेरे पति ने नहीं मैने मार दिया।  जब तक ग्रामीण कुछ समझ पाते बेटा राजेंद्र भी कटे हुए गले के साथ बाहर निकला। वह खून से लथपथ था। बाहर आकर बेहोश हो गया। पड़ोसी घर के अंदर पहुंचे तो मोंगाबाई का भी गला कटा हुआ था।आनन फानन में तीनों को एम्बुलेंस से पाटन अस्पताल ले गए। वहां चिकित्सकों ने मोंगाबाई को मृत घोषित कर दिया। वहीं राजेंद्र और उसकी पत्नी रेखा को अस्पताल  रेफर कर दिया। अस्पताल  में दोनों की पांच घंटे तक ऑपरेशन चला। घटना की वजह गृह क्लेश बताया जा रहा है।

ग्रामीणों के मुताबिक सास-बहू में तकरार होती थी., वही पुलिस पूछताछ में ये भी सामने आया कि सास मोंगाबाई और बहू रेखा में अक्सर तकरार होती थी। इसके लेकर घर में आए दिन कलह होता था। पुलिस ने संभावना जताई  है कि या  तो सास-बहू के बीच विवाद होने पर और बहू ने सास का गला  रेत दिया। इसके बाद उसने खुद का गला रेत दिया हो। फिर दोनों को इस हालत में देख बेटे ने अपना गला रेत दिया हो। वहीं दूसरी संभावना है कि बहू ने सास का गला रेता हो। यह देख बेटे ने पहले पत्नी का और फिर खुद का गला रेत दिया हो। घर में पुलिस को धारदार हंसिया मिला है। उसकी मुठिया पर खून लगा है, लेकिन धार पर कोई निशान नहीं मिला है।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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