स्वीमिंग पूल में फूटी भ्रष्टाचार की गंगा, करोड़ों की बंदरबांट का दोषी कौन..?

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खंडवा। सुशील विधानी| स्वीमिंग पूल का छज्जा धराशायी होते ही इसमें अनियमितताओं का जखीरा सड़क पर आ गया है। मौके पर छह साल में पचास लाख रुपए भी नहीं लगाए और तीन करोड़ रुपए से ज्यादा राशि ठेकेदार को नगर निगम ने कैसे दे दी? छज्जा भी घटिया निर्माण के कारण धराशायी हुआ है। इस मसले में अब नगर निगम के उपायुक्त और आयुक्त पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कलेक्टर ने इसकी खोजबीन की तो गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। पहले एक करोड़ के लगभग में निर्माण होना था, जिसकी राशि बढ़ा-चढ़ाकर चार करोड़ कैसे हो गई? इसके निर्माण में छह साल पूरे हो चुके हैं। पूर्व की लागत से चार गुना पैसा भी लग गया है लेकिन अभी तक पानी के टैंक भी नहीं बने हैं। नगर निगम और इसके आयुक्त क्या देखकर ठेकेदार को पैसे देते रहे? बताते हैं कि ठेकेदार भी महापौर के खास हैं। और उन्हीं के इशारे पर भुगतान निकलते रहे। अब मध्य प्रदेश में सरकार बदल गई है इसलिए यह घोटाले भी उजागर करने की हिम्मत कलेक्टर जैसे लोग कर रहे हैं। इतने समय स्वीमिंग पूल में घोटाले की लहरें चलती रहीं, लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया जबकि इस बड़ी योजना में तत्कालीन कलेक्टर कविंद्र कियावत ने जनभागीदारी से व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को आगे कर पचास लाख रुपए जुटाए थे। इसके बाद कियावत का तबादला हो गया और काम अटक गया। ठेकेदार ने काफी पैसा लगा दिया था। काम भी कर दिया था फिर भी नगर निगम ने सरकारी रकम का दुरुपयोग और अपने पॉवर का इस्तेमाल करते हुए स्वीमिंग पुल को बहुउपयोगी बताया और इसकी लागत बढ़ा दी। अपने ही चहेतों को इसका ठेका दिलवा दिया। मतलब साफ है कि लोगों के चंदे से एकत्रित पैसा भी नगर निगम वालों ने बेरहमी से अपनों पर लुटा डाला। विधायक देवेंद्र वर्मा भी इसी मसले पर महापौर से अनबन कर बैठे थे लेकिन सांसद नंदकुमार सिंह चौहान जैसे लोगों ने भी आम लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुए महापौर और नगर निगम का ही पक्ष लिया जिसका परिणाम यह है कि छज्जा गिर पड़ा। गनीमत थी कि उस वक्त नीचे मजदूर नहीं थे वरना दर्जनों मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन होता? नेताओं के चंद लालच में शहर को स्वीमिंग पुल नहीं मिल पा रहा है। भ्रष्टाचार की लहरों में तैराकों और खिलाड़ियों के साथ उन लोगों के सपने भी डूब रहे हैं जिन्होंने पचास लाख रुपए व्यक्तिगत रूप से एकत्रित कर कलेक्टर के मार्फत दिए थे। 

अचरज की बात तो यह है कि कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता प्रमोद जैन ने आकंठ में गोते खाती इस योजना को देखकर अपना दिया हुआ चंदा वापस मांगा है। भ्रष्टाचार कितना प्रबल तरीके से हो रहा था इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है। 

स्वीमिंग पूल निर्माण में हुए भ्रष्टाचार लेटलतीफी तथा शुरू होने के पहले ही उसकी छत गिर जाने की जांच करने एवं दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने की मांग प्रदेश कांग्रेस पूर्व प्रवक्ता प्रमोद जैन ने दूरदृष्टा मुख्यमंत्री कमलनाथ को एक पत्र के माध्यम से की है। 

प्रमोद जैन ने बताया ��ि 2012 में खंडवा के तत्कालीन कलेक्टर कविंद्र कियावत द्वारा शहर विकास में खंडवा डेवलपमेंट सोसाइटी का गठन कर एक सर्वसुविधायुक्त आधुनिक स्तर के स्वीमिंग पूल की सौगात जनभागीदारी के माध्यम से देने की पहल की थी। उनकी जनहित की योजना के कारण शहर के चुनिंदा लोगों ने कलेक्टर के प्रयास एवं 1 वर्ष में स्विमिंग पूल प्रारंभ कर देने के आश्वासन के साथ भरपूर सहयोग कर जनभागीदारी में उस समय लगने वाली लागत की आधी राशि रुपए करीब 50 लाख इक_ा कर शासकीय कोष में जमा किए थे। 

श्री जैन ने बताया कि उन्होंने भी कलेक्टर की पहल एवं आश्वासन के कारण पचास हजार रूपए सहयोग राशि दी थी। किंतु निर्धारित समय के 6 वर्ष बाद भी स्वीमिंग पुल का निर्माण नहीं होना तथा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ने से छत के गिर जाने के कारण उन्होंने अपनी सहयोग की राशि पचास हजार वापस करने की मांग की है। जैन ने कहा कि जरूरत पड़ी तो कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएंगे।


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