खंडवा। सुशील विधानि।
देश में बेहतर सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या सीमित है। ऐसे में भारी संख्या में ग्रैजुएट और अंडरग्रैजुएट छात्रों को खपाने के लिए निजी संस्थानों और कॉलेजों की जरूरत लगातार बढ़ रही है। इसी वजह से देश में प्राइवेट और फर्जी संस्थानों की बाढ़-सी आ गई है। यहां एक बात यह भी बताना जरूरी है कि न तो सभी प्राइवेट संस्थान बेकार हैं और न ही सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में खोट है। दिक्कत यह है कि क्वॉलिटी एजुकेशन के मामले में इनमें से ज्यादातर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ये संस्थान छात्रों के करियर की समस्या को सुलझाने के बजाय उलझा देते हैं। मोटी फीस वसूलने और टॉप क्लास की सुविधा देने का वादा करने वाले इन संस्थानों की क्वॉलिटी पर सवाल उठते रहते हैं, बावजूद इसके बच्चे इनके जाल में फंस जाते हैं।
इन कॉलेजों में प्रोफेसरों की संख्या तो अधिक होती है लेकिन उनकी योग्यता पर सवाल उठते हैं सामान्यता हर कॉलेज में हर विभाग में सामान्य पाठ्यक्रमों के लिए कम से कम एक प्रफेसर, दो एसोसिएट प्रफेसर और 4 असिस्टेंट प्रफेसर स्थायी रूप से होनी चाहिए। लेकिन यह तो केवल कागजों तक ही सीमित हो पाते हैं। जिले के प्राइवेट कॉलेज जो शिक्षा के नाम पर जिले में बेरोजगार युवकों को गुमराह करके कॉलेजों में एडमिशन करा कर मोटी रकम वसूल की जा रही है जिले के ऐसे कॉलेजों के खिलाफ लंबे अरसे से शिकायतें मिल रहीं है स्टूडेंट द्वारा कई बार इसकी शिकायत भी जिला कलेक्टर और प्रशासनिक अफसरों को की गई लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नही�� हो पाई। दरअसल, उच्च शिक्षा विभाग काे शिकायतें मिल रही हैं कि कई कॉलेज निर्धारित नियमों का पालन किए बिना ही चल रहे हैं। इसके बावजूद भी उच्च शिक्षा में बैठे प्रशासनिक अफसर इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं ध्यान तो तब जाता है जब स्टूडेंट सड़कों पर उतरकर अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए बाधित होते
कैसे फंसते हैं स्टूडेंट्स ……….
जिले में कई प्राइवेट कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है लेकिन इन प्राइवेट कॉलेजों में स्टूडेंट को अच्छी शिक्षा देने के नाम पर केवल गुमराह किया जाता है। कई प्राइवेट संस्थान बाहरी चमक-दमक पर ज्यादा फोकस करते हैं जिसे देखकर स्टूडेंट्स फंस जाते हैं। यह वैसे ही है जैसे आप कोई फ्लैट खरीदने जाते हैं और डिवेलपर आपको एक मॉडल फ्लैट दिखाकर कहता है कि आपको जो फ्लैट आज से 3 साल बाद मिलेगा, वह इसी तरह का होगा और आप उस पर विश्वास कर लेते हैं। दरअसल, मॉडल फ्लैट को तैयार ही ऐसे किया जाता है कि लोगों की आंखें चौंधिया जाएं, लेकिन असलियत का पता तब चलती है जब 3 या 4 साल बाद आपको फ्लैट दिया जाता है। इसी तरह जब कोई कोर्स खत्म कर बाहर निकलता है तब पता चलता है कि वहां एडमिशन का फैसला सही रहा या गलत। अमूमन बाहरी चमक-दमक में फंस जाने वाले स्टूडेंट्स का भविष्य खतरे में ही रहता है।
डिप्लोमा कोर्स कराने के नाम पर वसूली जा रही मोटी रकम-
जिले में कई ऐसे विद्यार्थी हैं जो घर बैठे कोर्स करना चाहते हैं ऐसे विद्यार्थियों को टारगेट बनाकर प्राइवेट कॉलेज डिप्लोमा के नाम पर काफी लूट जिले में चल रही है यह काफी हद तक सर्टिफिकेट प्रोग्राम की तरह ही होता है। इसे किसी खास क्षेत्र में कोर्स पूरा होने पर दिया जाता है। डिप्लोमा होने पर स्टूडेंट से मोटी रकम वसूली की जाती है घर बैठे डिप्लोमा भी हो जाता है ऐसे स्टूडेंट जिले में लगातार बढ़ते जा रहे हैं लेकिन डिप्लोमा का असली सच तो जब सामने आता है जब यह नौकरी में इसका उपयोग करते हैं लेकिन यह डिप्लोमा केवल कागज का टुकड़ा ही बनकर रह जाता है
प्लेसमेंट स्टूडेंट को किया जाता है गुमराह
प्राइवेट कॉलेजों में स्टूडेंट को प्लेसमेंट के नाम पर धोखाधड़ी की जाती है पैरंट्स ओर से अच्छे प्लेसमेंट देने के नाम पर मोटी रकम वसूली की जाती है लेकिन प्लेसमेंट भी ऐसा कि उन संस्थाओं के आते पते तक नहीं रहते विद्यार्थी ऐसे प्लेसमेंट से बचना चाहिए और ऐसे प्राइवेट कॉलेजों से भी बचना चाहिए जो विद्यार्थियों को गुमराह करते हैं।
कॉलेज फैकल्टी की योग्यता पर भी सवाल
जिले में जितने भी कॉलेज हैं वह यूजीसी नियमों के अनुरूप अपने कालेजों में प्रोफेसर नियुक्त नहीं कर पाते हैं प्रोफेसरों की योग्यता की बात कहे तो पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ पीएचडी एम फिल नेट स्लेट किसी भी प्रोफेसर को होना अनिवार्य है लेकिन कई प्राइवेट संस्था केवल कागजों पर ही प्रोफेसरों को नियुक्ति दे देती है योग्यता की बात करें तो ऐसे प्रोफेसरों की योग्यता केवल एम ए तक ही होती है जिले में एसे प्रोफेसरों की संख्या काफी बढ़ गई है यदि उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी ऐसी जांच कराएं तो ऐसी प्राइवेट संस्थाओं में सामने आ जाएगा कितना सच है
शिक्षा के नाम पर होटल का झंडा
खंडवा में एक ऐसा कॉलेज है जहां कॉलेज के साथ होटल का भी आनंद लिया जा सकता है कहने को तो यह केवल कैंटीन का नाम उपयोग में लिया जाता है लेकिन शाम होते ही डिनर पार्टियां होटलों मे तब्दील हो जाता है उच्च शिक्षा विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को सब पता है लेकिन आंख पर पट्टी बांधकर अंधे बनकर बैठे हुए हैं इन प्राइवेट कालेजों में नियमों को ताक में रखकर संचालित किए जा रहे हैं नगर निगम के अधिकारियों की मेहरबानी के चलते कई बार नोटिस तो मिला लेकिन अधिकारी वापस लौट जाते हैं आखिर क्या है ऐसे कॉलेजों में जो कैंटीन के नाम पर होटल संचालित कर रहे हैं जहां शाम होते ही महफिल सज जाती है पार्टी पिकनिक स्मार्ट बन जाता है कॉलेज
एक केंपस और अनेक यूनिवर्सिटी
जिले में एक ऐसी भी जगह है जहां एक परिसर में एक से अधिक यूनिवर्सिटी है सूत्रों द्वारा बताया गया है कि इस परिसर में एक से अधिक यूनिवर्सिटी के लिए प्रोफेसर सेम है बाकी सिर्फ कागजी कार्रवाई के व विज्ञापन के दम पर यूनिवर्सिटी का संचालित हो रहा है। कुछ समय पूर्व एफिलेशन के लिएअधिकारियों द्वारा इन्फेक्शन किया गया था तब कुछ समय के लिए ही दूसरी यूनिवर्सिटी का नाम रातों-रात हटाया गया था।
इनका कहना है कि
हिमांशु सिंह नगर निगम आयुक्त खंडवा मुझे इस विषय में जानकारी नहीं है आपने ध्यान आकर्षित किया है जो कि दिखाते हैं।