इटारसी, राहुल अग्रवाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के इटारसी (Itarsi) से करीब 18 किलोमीटर दूर शिवजी का ऐसा स्थान है। जहां एक रहस्यमयी गुफा के भीतर स्थित प्राचीन शिवलिंग है, जिसे लोग ‘तिलक सिंदूर’ (Tilak Sindoor) कहते हैं। कहा जाता है कि जब भगवान शंकर ने भस्मासुर नामक राक्षस को एक बरदान दिया था कि जिसके सर पर हाथ रखोगे वह भस्म हो जाएगा ,भस्मासुर ने उल्टी चाल भोलेनाथ के ऊपर चल दी और उन्ही के सर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा इसके बाद भोलेनाथ ने वहां से भागकर यही तिलकसिन्दूर नामक स्थान पर रखकर अज्ञातवास काटा था, यही से सुरंग के रास्ते पचमढ़ी भी गए जहाँ जटाशंकर में भी कुछ समय शंकर भगवान रहे।
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सिर्फ यही चढ़ता है शिवलिंग पर सिंदूर
भगवान शिव का ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ शिवलिंग पर जल, दूध, बिलपत्र आदि तो चढ़ता ही है, साथ ही यहां सिंदूर अनिवार्य रूप से चढ़ाया जाता है। दुर्गम पहाड़ियों और जंगली रास्तो से होकर यहाँ तक पहुँचा जाता है। हर साल महाशिवरात्रि और यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है. जिसमें लाखो भक्त शिवालय में दर्शन करते है। पर इस बार शासन के आदेशानुसार कलेक्टर ने यहाँ लगने बाले मेले को स्थगित कर दिया था और कोरोना से बचाव के दृष्टिगत प्रशासन ने यहाँ आने पर प्रतिबंध लगा दिया। सुबह से ही एसडीएम मदन सिंह रघुवंशी दल बल के साथ जमानी रोड पर व्यवस्थाओ में जुट गए थे किसी को भी दर्शन करने नही जाने दिया गया। मान्यता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान शंकर को सिंदूर चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं। प्राचीनकाल से ही आदिवासियों के राजा-महाराजा इस स्थान परपूजन करते आए हैं।
भस्मासुर से बचने के लिए यहाँ छुप गए थे
मान्यता है कि जब भस्मासुर भगवान शंकरजी के पीछे पड़ गया था, उससे पीछा छुड़ाने के लिए शिवजी ने यहां की पहाड़ियों में शरण ली थी। यहां कई दिनों तक छुपने के बाद उन्होंने पचमढ़ी जाने के लिए एक सुरंग का निर्माण किया था।प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक यह सुरंग आज भी मौजूद है, जो पचमढ़ी तक जाती है। इसी रास्ते से शिवजी पचमढ़ी गए थे। इसके बाद पचमढ़ी के जटाशंकर में भी छुपकर समय बिताया था।
यह है पौराणिक महत्व
इसके पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिले हैं, लेकिन यहां के तपस्वी ब्रह्मलीन कलिकानंद के मुताबिक यह ओंकारेश्वर स्थित महादेव मंदिर के समकालीन शिवलिंग है। सतपुड़ा पर्वत श्रंखला में यह स्थान है। यहां की जलहरी का आकार चतुष्कोणीय है। सामान्यतः जलहरी त्रिकोणात्मक होती है। ओंकारेश्वर महादेव के समान ही यहां का जल पश्चिम दिशा की ओर जाता है, जबकि अन्य सभी शिवालयों में जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता है। ग्रंथों में भी भारतीय उपमहाद्वीप में इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जिसमें इसे अनूठा बताया गया है।
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