किसानों के समर्थन में एकता परिषद की रैली मुरैना से दिल्ली हुई रवाना 

Gaurav Sharma
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मुरैना, संजय दीक्षित। देश में कृषि कानून को वापस लेने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन को अब एकता परिषद ने भी समर्थन दे दिया है। एकता परिषद की रैली आज मुरैना पहुंची। रैली पुराने बस स्टैंड परिसर में एकत्रित हुई, जहां किसान एकता मंच की रैली में सभी ने अपने-अपने भाषण दिए। किसान एकता परिषद की रैली मुरैना से धौलपुर तक पैदल चलेगी। इसके बाद धौलपुर से दिल्ली के लिए रवाना होगी। इस पदयात्रा में मध्य प्रदेश के सभी जिलों से किसान और आम जन लोग शामिल हुए।

मुरैना से शुरू हुई पदयात्रा

किसानों के साथ एकता परिषद के संस्थापक और गांधीवादी राजगोपाल पीवी ने कहा कि इस समय पूरे देश का किसान दिल्ली की सड़कों पर ठंड में आंदोलनरत है। वह अपनी मांगों को लेकर लगातार केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए कृषि कानून का विरोध कर रहा है और अब हमारी एकता परिषद भी किसान आंदोलन को मजबूत करने के लिए किसानों का समर्थन करने के लिए दिल्ली पहुंच रही हैं।

धौलपुर से होगी दिल्ली रवाना

राजगोपाल पीवी ने कहा कि ये पदयात्रा मुरैना से शुरू होकर धौलपुर पहुंचेगी और इसके बाद धौलपुर से दिल्ली के लिए रवाना होगी। जिसमें लगभग एक हजार की संख्या में मध्य प्रदेश के हर जिले से किसान शामिल हुए हैं। गांधीवादी राजगोपाल पीवी ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को कम्युनिस्ट, कांग्रेस और विपक्षी पार्टी में तोड़ने की कोशिश कर रही है, बल्कि ऐसा नहीं है, किसान तो किसान होता है और यही वजह है कि दिल्ली की सड़कों पर देश का किसान आंदोलन कर रहा है।

कृषि और उद्योग को नहीं मिला बराबर का दर्जा

कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को सड़कों से हटाने की अर्जियों पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई हैं। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि सरकार को किसान संगठनों और दूसरे पक्षों को शामिल करते हुए एक कमेटी बनानी चाहिए। जिससे किसानों को राहत मिल सके। इस देश में 60% केस अदालतों में जमीन से संबंधित हैं और किसान जमीन बेच बेचकर केस लड़ रहा है। पिछले दिनों अध्ययन हुआ है कि करीब 1 साल में एक लाख जमीन का केस लड़ने में खर्च होता है। भारत जब आजाद हुआ था तब कहा था कि, उद्योग और कृषि को बराबर दर्जा दिया जाएगा। उद्योग को जो दर्जा मिला वह कृषि और किसानों को नहीं मिला, लेकिन कालेधन में उद्योग ही चमकता रहा और किसानों को आत्महत्या की कगार पर छोड़ दिया।

किसानों द्वारा आत्महत्या में हुआ इजाफा

2010 से 2015 तक करीब 15 हजार किसानों ने आत्महत्या की है, लेकिन 2016 से 2019 में करीब 17 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या करना कम नहीं हुआ है। आत्महत्या इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि किसान कर्ज से लदा हुआ है। इसलिए आत्महत्या कर रहा है। कानून पारित करने से पहले किसानों से बात करना चाहिए था सबको विश्वास में लेना चाहिए था। कई देश ऐसे हैं, जहां लोगों से पूछ कर कानून बनाया जाता है। हम दिखाना चाहते हैं कि किसानों के आंदोलन में पंजाब के लोग नहीं, महाराष्ट्र के नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश में चंबल घाटी के लोग भी शामिल हैं। सभी जाति धर्म के लोग शामिल हैं।

कई किसान हुए शामिल

गरीब किसान को एक रुपए किलो गेहूं बंद ना हो जाए इसलिए किसान के साथ खड़ा होना बहुत जरूरी है। इसलिए हम किसानों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए दिल्ली कूच करेंगे। सभा के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ पुराने बस स्टैंड से धौलपुर के लिए एकता परिषद की रैली रवाना की गई। इस रैली में कांग्रेस विधायक राकेश मावई, दिमनी विधायक रविंद्र भिडोसा, सुमावली विधायक अजब सिंह कुशवाह, महेश मिश्र, दिनेश गुर्जर, रिंकू मावई, सुनील शर्मा, रामकुमार पाराशर, राजेश कथूरिया, राम लखन डंडोतिया, प्रमोद शर्मा, राकेश परमार, दुलारे सिंह सिकरवार, विक्रम मुदगल, दीपक शर्मा, कुशल पंडित, सुभाष सिकरवार सहित कई लोग उपस्थित थे।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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