सुरक्षाकर्मी-सफाई कर्मियों के साथ मारपीट,कर्मचारी हड़ताल पर

Gaurav Sharma
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मुरैना, संजय दीक्षित। जिला अस्पताल में आरएमओ के द्वारा बीती रात सुरक्षाकर्मी और सफाई कर्मियों के साथ मारपीट का मामला सामने आया है। जिसमें आरएमओ गजेंद्र सिंह तोमर के द्वारा जिला अस्पताल में कार्यरत सुरक्षाकर्मी और सफाई कर्मियों के साथ मारपीट की गई है। मारपीट के बाद रविवार की सुबह सफाई कर्मी और सुरक्षाकर्मी आवेदन देने के लिए सिटी कोतवाली थाने पहुंचे। जहां सिटी कोतवाली टीआई अजय चानना ने सफाईकर्मियों से कहा कि इस पूरे मामले में जांच के बाद ही एफआईआर की जाएगी।

वहीं इस पूरे मामले में मनोज बाल्मीक और सुशील श्रीनिवास का कहना है कि बीती रात आरएमओ गजेंद्र सिंह तोमर चादर ओढ़ कर निरीक्षण करने आए तभी किसी बात को लेकर आरएमओ का सुक्षकर्मियों से विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि लाठी-डंडों से मारपीट शुरू कर दी। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारी मदन श्रीवास की भी मारपीट की गई है और नर्सों से भी अभद्रता करने की सूचना मिली है। सफाई कर्मियों का कहना है कि इससे पहले भी कुछ दिन पूर्व आरएमओ ने स्टाफ नर्स और आशा कार्यकर्ता के साथ भी गाली गलौज किया था।जिसके बाद आज जिला अस्पताल में सफाई कर्मियों ने काम लामबंद कर हड़ताल पर बैठ गए हैं ।सफाईकर्मियों का कहना है कि जातीय अपमान और मारपीट की गई हैं अगर पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो ये हड़ताल जारी रहेगी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस पूरे मामले को सीएमएचओ और सिविल सर्जन के द्वारा मामले को रफा-दफा करने में लगे हुए हैं।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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