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Sun, Dec 21, 2025

तेंदुए को सम्मान पूर्वक दी गई अंतिम विदाई, जानिए आखिर क्यों घट रही इनकी संख्या?

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
तेंदुए को सम्मान पूर्वक दी गई अंतिम विदाई, जानिए आखिर क्यों घट रही इनकी संख्या?

Neemuch News : मध्यप्रदेश के नीमच में सोमवार को तेंदुए द्वारा बुजुर्ग जगदीश पर तेंदुए ने हमला कर जख्मी कर दिया था। जिससे जगदीश चंद्र बुरी तरह से घायल हो गया। जिसे आनन- फानन में उसे प्राथमिक उपस्वास्थ्य केंद्र जाट लाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे जिला चिकित्सालय नीमच रेफर कर दिया गया है। साथ ही, इसकी सूचना वन विभाग को दे दी गई है। जिसके बाद ग्रामीण एवं वन विभाग ने रेस्क्यू कर तेंदुए को पकड़ लिया लेकिन इस दौरान तेंदुए की मौत हो गई। जिसका पोस्टमार्टम वन विभाग की देखरेख में किया गया। फिलहाल, इसकी रिपोर्ट विभाग को नहीं मिल पाई।

वहीं, मृतक तेंदुए के अंतिम संस्कार के पूर्व वन विभाग द्वारा सम्मान पूर्वक अंतिम विदाई दी गई। इस अवसर पर जिला वन अधिकारी नीमच जिले के सभी रेंजर एवं वन विभाग के प्रमुख अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद थे। दरअसल, रतनगढ़ वन क्षेत्र के जाट क्षेत्र में रेस्क्यू के दौरान तेंदुए की मौत हो गई थी।

बाघ और तेंदुए की बड़ी तादाद में हो रही मौत 

बाघों की सबसे ज़्यादा संख्या वाले मध्य प्रदेश में पिछले एक साल में बाघों की सबसे ज़्यादा मौतें दर्ज की गई हैं। वन विभाग के आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में पिछले एक साल में 38 बाघ मरे हैं जो दूसरे किसी भी राज्य से सबसे ज़्यादा हैं। न सिर्फ़ बाघ, मध्य प्रदेश वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान सबसे ज़्यादा 87 मौतें तेंदुओं की भी मौत हुई है।

जानिए मौत की वजह

बाघों के संरक्षण को लेकर भारत सरकार की बनाई गई महत्वाकांक्षी परियोजना ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ को शुरू हुए भी इस साल अप्रैल माह में 50 साल पूरे हो जाएंगे। वर्ष 2018 में वन्य-प्राणियों के ‘सेन्सस’ में मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या 526 दर्ज की गई थी। 2022 में भी गणना की गई थी जिसकी रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है। ये गणना भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन ‘नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी’ और ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ मिलकर करते।

बता दें कि प्रदेश में मुख्य तौर पर 6 ‘टाइगर रिज़र्व’ हैं – पेंच, बांधवगढ़, कान्हा, पन्ना, संजय और सतपुड़ा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन जीवों की दो तरह की मौतें दर्ज की गई हैं- प्राकृतिक और अप्राकृतिक। दरअसल, एक बाघ की औसत आयु 12 वर्ष की होती है। इस हिसाब से 526 में इतनी मौतें होना बहुत बड़ी बात नहीं है लेकिन बाघों की अप्राकृतिक मौतों के कारण वन विभाग की चिंता बढ़ी हुई है।

अप्राकृतिक मौतों का आंकड़ा 8

रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले साल कुल 38 बाघ मरे हैं उनमें अप्राकृतिक मौतों का आंकड़ा 8 है। जिसके कई कारण हो सकते हैं, इनमें से जो मुख्य कारण अभी तक सामने आया है वो है बिजली का करंट लगने से मौत होना। वहीं, किसी-किसी घटना में ज़हर देकर मारने के भी सुबूत मिले हैं जबकि कुछ ज़्यादा मामले बाघों के फंदे में फँस जाने से हुई उनकी मौत के हैं। कुछ मामलों में क्षेत्र पर अधिकार को लेकर बाघों में आपस में हुई लड़ाई भी सामने आई है।

इस साल हुई मौतें

बात करें इस साल की तो जनवरी महीने में सिवनी ज़िले में एक बाघ की करंट लगने से मौत हुई। ये घटना जंगल से लगे बकरमपथ गाँव की बताई गई। वन विभाग की जांच में पाया गया कि बाघ गाँव से होकर गुज़रने वाली 11 किलोवॉट की बिजली के तार के चपेट में आ गया था। वहीं, दूसरी तरफ पन्ना टाइगर रिज़र्व में भी एक बाघ के अवशेष पेड़ से लटके हुए मिले। जाँच में जो बात सामने आई थी, जिससे  पता चलता है कि अक्सर गाँव वाले अपनी फ़सल को जानवरों से बचाने के लिए जो फंदा लगाते हैं, ये बाघ उसी फंदे में फँस गया था।

नीमच से कमलेश सारडा की रिपोर्ट