राजगढ़| मनीष सोनी| मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की सारंगपुर निवासी चैताली पारख जैन साध्वी बनेंगी। सांसारिक जीवन छोड़कर चैताली संयम जीवन धारण करेंगी। चैताली जिसके पास परिवार है, पैसा है, शोहरत है, पढी लिखी है,अच्छी सेहत है… उसे परिवार में किसी बात की कमी नहीं है | आम आदमी की नजर से देखा जाए तो उससे खुशनसीब और कोई नहीं, फिर भी वह वैराग्य धारण करने जा रही है। चैताली की नजर में ये सारी चीजें बेमानी है, इसलिए वह ‘दीक्षा’ ले रही है| न पैसे का मोह न परिवार का, न अच्छे कपड़े का,न अच्छे खाने पीने का. बाकी पूरा जीवन साध्वी बनकर ईश्वर की आराधना में गुजार देना चाहती है|
सारंगपुर के कपड़ा व्यापारी लाभमल पारख की 22 वर्षीय बेटी चैताली हमेशा से ही पढ़ाई लिखाई में अव्वल रही। बी.ए. पास चैताली का बचपन से ही धर्म के प्रति विशेष लगाव रहा। इसी लगाव के चलते उसने दीक्षा लेने का निर्णय लिया। चैताली ने अपना निर्णय जब परिवार को बताया तो माता पिता ने उसे समझाने का प्रयास किया, उसे अच्छे घर में शादी सहित कई तरह के प्रलोभन दिए गए लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ी रही। करोड़पति ने संपत्ति छोड सन्यास लिया या फिर किसी 14 साल के बच्चे ने तमाम सपने त्याग कर सन्यास की राह थामी. ये सारे बिरले उदाहरण जैन समुदाय में ही मिलते हैं. ऐसा ही उदाहरण अब चैताली बनने जा रही है। जैन समाज में सन्यास और दीक्षा का यह क्रम सदियों से अनवरत जारी है|
एक चीज है जो सबसे अलग है. वह है जैन धर्म में दीक्षा का महत्व। जैन धर्म में चुपचाप दीक्षा नहीं ले ली जाती, बल्कि पूरा समाज, रिश्तेदार और वरिष्टजनों के साथ मिलकर एक समारोह आयोजित होता है. इस दीक्षा समारोह में दीक्षा दी जाती है। यह समारोह ठीक वैसा ही होता है, जैसे कोई शादी का आयोजन. यानि दीक्षा लड़के लें चाहें लड़कियां वे सांसारिक जीवन और मोह त्यागने के पहले हंसी खुशी से विदा होती हैं. दीक्षा लेने से पहले ठीक शादी की रस्मों की तरह उन्हें हल्दी लगती है, फिर मेंहदी लगाई जाती है. मंडप सजता है जहां लड़कियां सज-धज कर दुल्हनिया की तरह तैयार होती हैं और लड़के भी आखिरी बार सबसे ज्यादा अच्छे वस्त्र धारण करते हैं. फिर घर से समारोह स्थल तक गाजे-बाजे के साथ वरघोड़ा निकलता हैं. परिवार के लोग बेटी या बेटे को आखिरी विदाई देते हैं. चैताली को भी संन्यास जीवन से आखिरी बिदाई देने के लिए उसे दुल्हन की तरह सजाकर रथ पर बिठाकर पूरे नगर में भव्य स्वागत किया गया।
बेहद कठिन है बैराग्य की राह
‘जैन समुदाय’ में साधु-साध्वी बनने के बाद कितनी कठिन डगर से गुजरना पड़ता है। चैताली को अपने सिर के बालों का लोच करना होगा, सिर के बाल कैंची या रैजर से नहीं बल्कि एक एक हाथों से तोड़े जाएंगे। सूर्यास्त के बाद जैन साधु और साध्वियां पानी की एक बूंद और अन्न का एक दाना भी नहीं खाते हैं. इसी तरह सूर्योदय होने के बाद भी ये लोग करीब 48 मिनट बाद पानी पीते हैं.दीक्षा के बाद से ही जीवन भर गर्म किया हुआ पानी पिया जाता है और साथ ही कठिन तपस्या भी करनी पड़ती है। वे अपने लिए कभी भोजन नहीं पकाते हैं. ये सभी अपने लिए गोचरी मांगकर भोजन का इंतजाम करते हैं. गोचरी का भी अपना नियम है. . जैन मुनियों को एक घर से बहुत सारा भोजन लेने की अनुमति नहीं होती है. वे स्वाद के लिए भोजन नहीं करते हैं, बल्कि धर्म साधना के लिए भोजन करते हैं| जैन मुनि किसी भी प्रकार की गाड़ी या यात्रा के साधन का प्रयोग नहीं करते हैं. वे मीलों का सफर भी पैदल ही पूरा करते हैं. यह यात्रा बिना जूते और चप्पल के होती है. इसके साथ ही किसी भी एक स्थान पर उन्हें अधिक दिनों तक रुकने की अनुमति नहीं होती. बारिश के 4 माह इन्हें एक ही स्थान पर रहना होता है, बारिश में जैन साधु-साध्वी आवागमन नहीं करते।