रतलाम में जैन समाज ने निभाई 150 साल पुरानी परंपरा, बैलगाड़ी से पहुंचे बिबड़ौद तीर्थ

Diksha Bhanupriy
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Ratlam News: दुनिया बहुत ही आधुनिक हो चुकी है हर कोई महंगी गाड़ियों और गैजेट्स का शौक रखता है। लेकिन इन सबके बीच भी कुछ परंपराएं ऐसी है जो आज भी जारी है। परंपराओं के लिए लोग अपनी सारी शान और शौक छोड़कर संस्कृति का पालन करते हैं। ऐसा ही नजारा आज रतलाम में देखने को मिला। यहां पर जैन समाज के लोग अपनी 150 साल पुरानी परंपरा निभाते दिखाई दिए।

डेढ़ सौ साल पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए लोगों ने बैलगाड़ी का सफर किया और बिबड़ौद मेले में पहुंचे। यह जगह रतलाम से 3 किलोमीटर दूर स्थित है जहां पर प्रभु केसरियानाथ के जन्म दिवस के मौके पर हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बैलगाड़ी से ही जाते हैं। इस बार भी सैकड़ों की संख्या में लोग मेले का आनंद लेने के लिए यहां पहुंचे।

ये है मान्यता

इस मेले के पीछे एक धार्मिक मान्यता जुड़ी हुई है। मान्यता के मुताबिक प्रभु केसरियानाथ का चिन्ह बैल है इसी वजह से बैलगाड़ी के जरिए इस जगह पर जाया जाता है। वहीं यह भी कहा जाता है कि पुराने समय में इस जगह तक आने के लिए लोगों के पास बैलगाड़ी ही एकमात्र साधन होती थी इसलिए आज भी इस परंपरा का निर्वहन करते हुए यह सफर बैलगाड़ी से तय किया जा रहा है। हर साल बड़ी संख्या में भक्तों का जमावड़ा बिबड़ौद तीर्थ पर लगता है।

रतलाम से बड़ी संख्या में जनता यहां पहुंचती है। इस मेले की खासियत यह है कि परंपरा के अनुसार तीर्थ क्षेत्र के दर्शन तो किए ही जाते हैं, लेकिन मेले में जो झूले लगते हैं वह भी परंपरागत ही है। यहां पर आज भी हाथ से धकाए जाने वाले लकड़ी के झूले लगाए जाते हैं, जिनका आनंद यहां पहुंचे लोग लेते दिखाई देते हैं। इस साल भी मेले में लोगों ने उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया।


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"पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।” इसी उद्देश्य के साथ मैं पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हूं। मुझे डिजिटल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अनुभव है। मैं कॉपी राइटिंग, वेब कॉन्टेंट राइटिंग करना जानती हूं। मेरे पसंदीदा विषय दैनिक अपडेट, मनोरंजन और जीवनशैली समेत अन्य विषयों से संबंधित है।

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