ग्वालियर, अतुल सक्सेना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) मध्यभारत प्रांत के चार दिवसीय प्रांतीय स्वर साधक संगम (घोष शिविर) (Swar Sadhak Sangam,Ghosh Shivir) का आज रविवार को समापन हो गया। आयोजन के समापन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत (RSS Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat) ने कहा कि संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं मन को शांत कराने वाली कला है। उन्होंने कहा कि भारतीय कलाएं सत्यम, शिवम, सुंदरम का दर्शन कराती हैं।
केदारधाम में आयोजित चार दिवसीय स्वर साधक संगम घोष शिविर के समापन अवसर पर संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत (RSS Chief Dr. Mohan Bhagwat) ने कहा कि कदम से कदम मिलाने से मन से मन मिलते हैं और देश को बड़ा बनाने के लिए जब इस तरह के कार्यक्रम करते हैं तो ताल मिलते हैं। इसलिए संघ में घोष का वादन शुरू हुआ। भारतीय संगीत की प्राचीन परम्परा में सुर और साधना शामिल हैं। ग्वालियर (Gwalior News) स्वयं संगीत की धरा है। एक घराना तो ग्वालियर (Gwalior Gharana) के नाम से ही प्रसिद्ध है।
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उन्होंने कहा कि पहले संघ के घोष वादन में ब्रिटिश संगीत पर आधारित रचना बजती थीं। बाद में भारतीय संगीत के आधार पर संगीत रचनाएं बनीं और वादन शुरू हुआ। संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि हमारे यहां संगीत मन को शांति देने वाला है। मन को समअवस्था में लाने वाला है। सब बातों में सम रहना तथा समाज को जोडऩे के सारे गुण भारतीय संगीत में मिलते हैं। भारतीय संगीत में सुर निश्चित हैं और अनुशासन हैं। अनुशासन का पालन करना पड़ता है। इसको उत्कृष्ट करते हैं तो मन और बुद्धि शांत होती है और अनुशासन का पालन नहीं करते हैं तो मन विचलित होता है।
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RSS प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने कहा कि संघ में अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं। कार्यक्रमों से संघ का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हर जगह घोष है और इसके हिसाब से यह तय नहीं किया जा सकता कि संघ कोई अखिल भारतीय कार्यशाला है। संघ में मार्शल आर्ट के तहत शारीरिक क्रियाकलाप होते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि संघ कोई व्यायाम शाला है। कहीं कहा जाता है कि संघ पैरामिलिट्री फोर्स की तरह है तो संघ पैरामिलिट्री फोर्स भी नहीं है। इस तरह की विविध गतिविधियां संघ की कार्यपद्धति में हैं। ये सारे कार्यक्रम मनुष्य की गुणवत्ता बढ़ाने वाले हैं और गुणवत्ता वाले मनुष्य ही सभी जगह खड़े हो जाएंगे और समाज की चिंता करेंगे। समाज उन पर विश्वास करेगा। यह संघ का मूल काम है।
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सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि हमारा मानना है कि कच्छ की खाड़ी से कामरूप तक और कश्मीर से कन्या कुमारी तक समरसता का वातावरण बने। सामान्य लोगों के क्रियाकलाप होते हैं फैशन में चलना, आधुनिक वातावरण को ओढ़े रहना है। जो श्रेष्ठ होते हैं उनके आचरण का अनुसरण समाज करता है। समाज ठीक हो गया तो देश का भाग्य बदलता है। नेता, नारा आदि से परिवर्तन नहीं होता। अगर होता भी है तो कुछ समय के लिए होता है। हमारा मानना है कि बदलना है तो गुणवत्ता से, आचरण से बदलाव हो। अपने राष्ट्र को परम वैभव संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए संपूर्ण समाज भागीदार बनेगा, ऐसा संघ का ध्येय है। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो स्वयं कुछ नहीं करते, दूसरों को सुधारने का ठेका लेते हैं। हमारे समाज में भी यह आदत है कि स्वयं कुछ भले न करें लेकिन दूसरे में सुधार की उम्मीद करता है। जबकि जागृत रहकर स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करने वाले समाज को अपने आप प्रभावित करते हैं। यही संघ की कार्यशक्ति है इसलिए संघ बना है। संघ को ठेका नहीं लेना है, संघ तो धर्म का संरक्षण करते हुए समाज को तैयार करने का कार्य कर रहा है।
घोष वादकों के जयघोष से गूंजा केदारधाम
चार दिवसीय शिविर में शामिल होने 31 प्रांतों से आए 550 से अधिक घोष वादकों के जयघोष से केदारधाम गूंज उठा। समापन अवसर पर घोष वादकों ने विभिन्न रागों पर आधारित पांच रचनाएं ध्वजारोपणम्, भूप, मीरा, शिवरंजिनी तथा तिलंग का वादन किया। साथ ही उन्होंने रागों की कला का प्रदर्शन किया। जिसे देखकर शहरवासी गदगद हो गए। ग्वालियर में इस तरह का यह पहला अवसर है जब इस तरह के स्वर साधक संगम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात सरोद वादक अमजद अली खां, लेफ्टीनेंट जनरल अशोक सिंह, जस्टिम आरके सक्सेना, संगीत विवि के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार नाहर, सितार वादक श्रीराम उमड़ेकर, नृत्याचार्य ईश्वरचन्द्र करकरे, डॉ. भगवानदास माणिक, अनीता ताई करकरे, जयंत खोत सहित अनेक संगीतज्ञ एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।