महिलाओं ने ढूंढा रोजगार का नया तरीका, गोबर से बना रही मू्र्तियां और दीपक

Gaurav Sharma
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सीहोर, अनुराग शर्मा। जिले के इछावर क्षेत्र की ग्राम पंचायत भाऊखेड़ी कन्हैया गो-शाला का संचालन स्व सहायता समूह की महिलाएं कर रही हैं। महिलाओं ने गाय के गोबर को उपयोग में लेने नया तरीका ईजाद किया है। महिलाएं गोबर से आकर्षक गमले, प्रतिमाएं बना रही हैं। इसके अलावा दीवाली के लिए गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति और दीपक भी इसी गोबर से तैयार किए जा रहे हैं। इसकी खास बात यह है कि ये सामग्री मिट्टी की सामग्री की अपेक्षा बहुत हल्की और टिकाऊ भी साबित हो रही है।

भाऊखेड़ी में गो-शाला का नेतृत्व करने वाली स्व सहायता समूह की महिलाओं ने स्वरोजगार का नया तरीका खोज निकाला है। महिलाओं का कहना है कोरोना काल में रोजगार और रोजीरोटी धंधे सब बंद हो गए थे। परिवार को पालने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढाया और गाय के गोबर से कई तरह के घरेलू उपयोग की सामग्री का निर्माण किया जा रहा है। जो बाजार में मिलने वाली सामग्री से बहुत सस्ती है।

उपले बनाने वाले गोबर से व्यावसाय का नया तरीका तलाशा

महिलाओं ने गाय के गोबर से अब उपले नहीं स्वरोजगार के माध्यम का तरीका ईजाद किया है। गोबर से नया व्यवसाय भी शुरू कर दिया है। गोबर से दीपक, गमले, प्रतिमाएं सहित अन्य वस्तुएं भी बनने लगी हैं। महिलाओं ने अभी तक 200 गमले तैयार कर लिए हैं।

 

चार सामग्री से तैयार हो रहे गमले

स्व सहायता समूह की अध्यक्ष सरोज सेन ने बताया कि गोबर से गमला निर्माण में चार तरह के कच्चे माल को मिलाया जाता है। इसमें गोबर, पीली मिट्टी, चूना, भूसा प्रमुख है। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन ने महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत प्रेरित किया। साथ ही गमले, प्रतिमा, दीपक निर्माण का प्रशिक्षण भी दिलवाया। पर्यावरण के अनुकूल गोबर से बनी सामग्री को लेकर अध्यक्ष सरोज सेन ने बताया कि गोबर से गमला बनाने से प्रमुख लाभ यह है कि यह टिकाऊ है। साथ ही पर्यावरण के अनुकूल है। प्लास्टिक-पॉलिथिन के गमले के स्थान पर इनका उपयोग किया जा सकता है। क्षतिग्रस्त गमले की खाद भी बन सकती है। गो-शाला में एक मशीन भी लगाई गई है। इस मशीन से गोबर की लकड़ी बनेगी। समूह की महिलाए मनीषा मालवीय सरोज राव, दोनो का कहना है प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत से हमे रोजगार मिल रहा है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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