मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में अपने आप में एक अनूठा और अनोखा मामला सामने आया है। मामला 2020 का है, जब ग्वालियर में जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉक्टर के के दीक्षित व सदस्य रणविजय सिंह, दिनेश संप्र और किशन लाल हिंडोलिया के खिलाफ तत्कालीन कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने जांच की थी। इन लोगों के ऊपर कई गंभीर आरोप थे, लेकिन सबसे गंभीर आरोप बाल निकेतन में रहने वाली एक लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का था जिसमें इन लोगों पर कार्रवाई न करने का का गंभीर आरोप लगा था।
कलेक्टर ने अपनी जांच में दीक्षित व उनकी टीम को जांच में विलंब करने का दोषी पाया था और यह भी पाया गया था कि इन लोगों ने आरोपियों को लाभ पहुंचाने के लिए यौन पीड़िता की बयानों की वीडियो रिकॉर्डिंग की जो उनके अधिकार क्षेत्र के बिल्कुल बाहर थी। इतना ही नहीं, जब इस बारे में तत्कालीन कलेक्टर ने डा.के.के.दीक्षित से पत्राचार किया, तो दीक्षित द्वारा जबाव में भेजे गये पत्र की भाषा को भी अमर्यादित और असंसदीय पाया गया।
वीडियो रिकॉर्डिंग बनाये जाने पर कोई कार्रवाई नहीं
वहीं तत्कालीन कलेक्टर ने डा.के.के दीक्षित की अध्यक्षता वाली जिला बाल कल्याण समिति को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की अनुशंसा की है। इतना ही नहीं, तत्कालीन कलेक्टर ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि इन लोगों को भविष्य में किसी भी सरकार की किसी भी बाल समिति या संस्था में सदस्य नही बनाया जाए। हैरत की बात यह भी है कि तत्कालीन कलेक्टर की इस अनुशंसा पर तो अमन हो गया कि इन्हें अब किसी बाल समिति का सदस्य नहीं बनाया गया लेकिन युवती के साथ यौन उत्पीड़न मामले में वीडियो रिकॉर्डिंग बनाये जाने पर कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है, जबकि तत्कालीन कलेक्टर ने ही अपनी रिपोर्ट में इसे गंभीर मामला मानते हुए कार्रवाई की बात लिखते हुए इस समिति द्वारा यौन पीड़िता के बयानों की वीडियो रिकार्डिंग को पुलिस अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप माना था।
गंभीर मामले में भी शासन प्रशासन चुप्पी साधे!
इतना ही नहीं, उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में संज्ञान लेते हुए इसे निजता के अधिकार का हनन माना था और आवश्यक कार्रवाई की बात कही थी। लेकिन डा.के.के.दीक्षित का रसूख किस कदर हावी है कि चार साल बीतने के बाद भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सवाल यह भी है कि आखिरकार दुष्कर्मियों के साथ बाल कल्याण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष और सदस्यों के क्या ऐसे निजी संबंध थे कि उन्हें यौन पीड़िता का वीडियो बयान बनाने की जरूरत पड़ी और सवाल यह भी है कि यदि इतने गंभीर मामले में भी शासन प्रशासन चुप्पी साधे है तो फिर आखिरकार दुष्कर्मियों के खिलाफ सरकार की कड़ी कार्रवाई के संदेश का क्या मतलब है।