निवाड़ी। मयंक दुबे ।
मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस कार्यक्रम में बुंदेली मौनिया नृत्य पर प्रदेश के वाणिज्य कर मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर ने जमकर नृत्य किया गौरतलब है कि बुन्देलखण्ड का पारंपरिक नृत्य है मौनिया नृत्य है । मंत्री जी का मुनिया नेत्र पर डांस स्थापना दिवस कार्यक्रम में लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा कार्यक्रम में जिले के कलेक्टर अक्षय सिंह व एसपी मुकेश श्रीवास्तव मौजूद रहे ।।आप भी देखिए मंत्री जी को मोनिया नृत्य पर रखते हुए।।
इस दिन से हुई इस अद्भूत नृत्य की शुरुआत
-बरेदी नृत्य बुन्देलखण्ड के चरवाहे उस समय किया करते थे जब उनकी फसल की अच्छी उपज होती थी ।यह नृत्य दीपावली के दूसरे रोज मोनी पडवा पर किया जाता है !इस नृत्य में एक दर्जन लोग गोला बनाकर खड़े होते है तथा बीच में एक व्यक्ति खड़ा होता है इन सभी के हाथ में लाठिया होती है गोले के बीच में अकेले खड़े व्यक्ति पर लोग गीत व ढोल नगड़िया की थाप की लय पर लाठिया बरसाते है!यह लोक नृत्य युद्ध कला कोशल व लोक संगीत का समन्वित स्वरुप है ।
इसमें चरवाहों की लाठिया दीवाली गीत व ढोल नगड़िया की लय युद्ध कला के साथ संगीत की रोमांचकारी लय पैदा करती है पर अब यह नृत्य धीरे -धीरे विलुप्त हो रहा है !बुंदेलखंड के करीब पाच हजार बरेदी नृत्य दलो में से अब मात्र सौ नृत्य दल शेष बचे है !बरेदी नृत्य की यह विशेषता होती है की लाठिया लेकर नाचने वाले न्रतको की एक दुसरे से टकराने वाली लाठियों की लय ढोलक की थाप से अलग नहीं होती है ।
संगीत की सीमाओं में रहकर ही नर्तक लाठियो से युध्कला के रोमांचकारी करतब दिखाते है !गोले के बीच में अकेला खड़ा एक व्यक्ति संगीत की लय में ही चलने वाली लाठियो को अपने एक लाठी पर झेलता है जो काफी रोमांचकारी होता है !कभी कभी गोले पर खड़ा व्यक्ति अपनी आखो पर पट्टी भी बाध लेता है था बिना देखे चारो और से आने वाली लाठियो से अपनी एक लाठी के बल पर बचाव करता है !इस दौरान लाठियो के टकराव से जो आवाज आती है वह ढोल नगड़िया की थाप की लय पर ही चलती है यह लय से अलग न हो यह इस नृत्य की शर्त होती है !इस नृत्य को बुंदेलखंड के दीवाली गीतों पर किया जाता है !एक व्यक्ति जो न्रतको के गोले से थोड़ी दूरी पर खड़ा रहता है वह अलाप भरकर बुन्देली गीत गाता है और इसी के साथ नृत्य शुरू हो जाता है !नर्तको के कमर में घुघरू बधे होते है !जो व्यक्ति दीवाली गीत गाता है उसे बरेदी कहा जाता है ।
बरेदी नृत्य से ही मिलता जुलता मोनिया नृत्य भी होता है इसमें युद्धकला का प्रदर्शन नहीं होता बल्कि इसमें सिर्फ लोकगीत व संगीत की प्रमुखता होती है !इसमें एक व्यक्ति भगवन कृषण के रूप में मौजूद होता है जबकि उसके चारो और कमर में घुघरू बाधकर तथा हाथो में छोटे -छोटे डंडे लेकर मोनिया नर्तक घेरा बनाये रहते है !दीवाली गीत के अलाप के साथ ही नर्तक दल के सदस्य जोर जोर से उछलने लगते है था ढोल व मंजीरो की लय के साथ नाचकर हाथो के डण्डो को एक दूसरे में मारते है!कमर में घुघरू और हाथो के के डंडों की लय लोगो को रोमंचित कर देती है । मगर प्रशासनिक उपेक्षा के चलते इस विधा से जुड़े कलाकार आज आर्थिक रूप से बदहाल है इसके कारण वे अपनी इस पारम्परिक कला से दूर होते जा रहे है !अगर समय रहते इस कला को सहेजने के लिए सरकार के द्वारा किसी तरह का कोइ कदम न उठाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह लोक कला विलुप्त होने की कगार पर आ जाएगी।