सर्व शिक्षा अभियान अर्थात शिक्षा की पूर्ण गुणवत्ता, इसी माध्यम से सरकार द्वारा छात्र-छात्राओं को किताबें, ड्रेस ,साइकिल और मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था की गई है लेकिन इस शिक्षण सत्र को शुरू हुए करीब दो महीना होने को आया है लेकिन अभी तक छात्र एवं छात्राओं के पास उनकी पूरी किताबें नहीं पहुंची जबकि जिले के अधिकारी यह कहते नहीं थकते कि जिले में किताबें बंट चुकी हैं उधर शिक्षक इस बात से परेशान हैं कि उन्हें अपना पैसा खर्च कर पढ़ाई बीच में छोड़कर किताबें लेने जाना पड़ता है।
तकनीक का दुरुपयोग कैसे होता है इसका उदाहरण उमरिया जिले में देखने में आया है, यहाँ स्कूलों में शासन द्वारा भेजी जाने वाली किताबों का वितरण अफसरों की नजर में हो चुका है क्योंकि ये उनका ऑनलाइन डाटा दिखा रहा है लेकिन हकीकत ये है जन शिक्षा केंद्र में किताबों का ढेर लगा है और बच्चे बिना किताबों के पढ़ रहे हैं, अब सवाल ये उठ रहा है कि जब किताबें बंट चुकीं तो जन शिक्षा केंद्र में रखीं किताबें किसकी है।
टेंडर स्कूलों तक किताबें पहुँचाने का, पहुंचा दी जन शिक्षा केंद्र
खास बात ये है कि इस वितरण व्यवस्था में बड़ा गोलमाल ये है कि जिस ठेकेदार को स्कूलों तक किताबें पहुँचाने का टेंडर हुआ है उसने जन शिक्षा केंद्र पर किताबें रख दी फिर जन शिक्षक ने उनके अधीन आने वाले प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों को किताबें ले जाने के निर्देश दे दिए, अब शिक्षक अपने साधन से आते हैं और किताबें ले जाते हैं नतीजा ये है कि बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, पूरी किताबें उनके पास हैं नहीं उल्टा सर भी चले जाते हैं।
जन शिक्षक बहुत जोश में बता रहे वे बुलाते हैं किताबें लेने शिक्षकों को
ये जो घटनाक्रम हमने आपको बताया वो उमरिया जिले के ब्लॉक करकेली का है, यहाँ पीएमश्री शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चंदिया जन शिक्षा केंद्र में पदस्थ जन शिक्षक संतोष कुमार द्विवेदी की बातों को आप ध्यान से सुनिए वे बता रहे हैं कि उनके अधीन कितने प्राइमरी और कितने मिडिल स्कूल है और उन्होंने शिक्षकों को उनके यहां से किताबें ले जाने के लिए कहा है, शिक्षक आते हैं और अपना पैसा खर्च कर किताबें ले जाते है, वे बड़ी सहजता से कह रहे हैं कि पिछले साल सीधे स्कूल भेजी गई थी इस साल यहाँ आई हैं किताबें तो यहाँ से बाँट रहे हैं।
शिक्षक खुद अपने साधन से लेने जा रहे किताबें, जिम्मेदारी ठेकेदार की
अब जरा मिडिल स्कूल पाली में पदस्थ शिक्षिका संध्या जायसवाल को सुनिए, वे बता रहीं हैं कि हम लोग अपने साधन से ही किताबें लेकर आ रहे हैं जबकि पिछले साल यहीं स्कूल में किताबें आई थी, उन्होंने कहा कि सर लोग अपनी गाड़ी से किताबें लेकर आते हैं हम लोग अपना ही पैसा लगाते है।
DPC का दावा 98 प्रतिशत किताबें स्कूलों में बंट गईं
अब शिक्षा विभाग उमरिया के जिला परियोजना अधिकारी के के डेहरिया को सुनिए, उनकी बातों से समझा जा सकता है कि उन्हें जमीनी हकीकत की कितनी जानकारी है, वे कह रहे हैं कि हमने ठेकेदार के माध्यम से स्कूलों में पहुंचा रहे हैं उनका दावा है कि उमरिया जिले में 98 प्रतिशत किताबों का वितरण हो चुका है, शेष बची किताबों को जल्दी ठेकेदार के माध्यम से स्कूलों में पहुंचा दिया जायेगा।
जिला परियोजना अधिकारी को नहीं मालूम उनके क्षेत्र का हाल
मीडिया ने जब उनसे कहा कि आपका ठेकेदार नहीं शिक्षक खुद जन शिक्षा केंद्र से किताबें लेने जाते हैं तो उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसी कोई शिकायत नहीं है आपने बताया है यदि कोई जन शिक्षक ऐसा कर रहा है तो उसके खिलाफ और जो शिक्षक किताबें लेने जा रहा है उसके खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे, उन्होंने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि शिक्षक स्कूल जाकर किताब लेकर आये, हम ठेकेदार के माध्यम से स्कूलों में किताबें पहुंचा रहे हैं।
टेंडर प्रक्रिया पर उठ रहे सवाल
बहरहाल शिक्षक जन शिक्षक और परियोजना अधिकारी की सुनने के बाद सवाल ये है कि अगर पुस्तक वितरण में टेंडर प्रक्रिया की गई थी तो टेंडर की शर्तें क्या थी? किस महीने में कार्य करना था? टेंडर प्रक्रिया के द्वारा कौन सी गाड़ियां लगाई गई? ट्रांसपोर्टिंग के लिए किसने इन किताबों को कहां किस किस स्कूल तक पहुंचाया? यह सब डाटा सर्व शिक्षा अभियान के पास सुरक्षित होगा लेकिन अब जब किताबें स्कूलों में पहुंची ही नहीं तो ठेकेदार के क्या किया इसका जवाब विभाग को देना होगा।
उमरिया से ब्रजेश श्रीवास्तव की रिपोर्ट





