डिजिटल इंडिया मुहिम ने लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है और कई हद तक आसान भी बना दिया है लेकिन खास बात ये है कि अब इसका उपयोग जंगली जानवरों के लिए भी हो रहा है, अब जंगली हाथियों की गणना डिजिटली की जा रही है, और ये अभिनव प्रयास शुरू किया है मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क ने।
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व एक अनोखी और पहली बार की जा रही पहल के चलते एक बार फिर सुर्खियों में है। जहां अब तक यह टाइगर रिजर्व बाघों के संरक्षण और गणना के लिए प्रसिद्ध रहा है, वहीं अब यहां जंगली हाथियों की पहचान भी डिजिटल तरीके से की जा रही है। प्रबंधन द्वारा “एलीफेंट आईडी” परियोजना शुरू की गई है, जिसके तहत प्रत्येक हाथी की तस्वीर खींचकर उसे एक विशेष कोड और पहचान क्रमांक दिया जा रहा है।

यह डिजिटल प्रक्रिया प्रदेश में पहली बार किसी टाइगर रिजर्व में अपनाई जा रही है। इसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि अब तक जिन जंगली हाथियों की संख्या का सिर्फ अनुमान ही लगाया जाता था, उनकी सटीक गिनती और गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। इसके साथ ही यह भी पता चल सकेगा कि कौन-कौन से हाथी किस-किस झुंड का हिस्सा हैं और वे किन क्षेत्रों में ज्यादा सक्रिय हैं।
हाथियों को मिल रहाविशेष कोड, इसी से हो रही पहचान
बांधवगढ़ नेशनल पार्क के डायरेक्टरअनुपम शाह ने बताया कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के नौ परिक्षेत्रों की 139 बीटों में समय-समय पर हाथियों की गतिविधियां देखी जाती हैं। जब भी किसी क्षेत्र में हाथियों का मूवमेंट दिखाई देता है, तो रिजर्व प्रबंधन द्वारा हाथी विशेषज्ञों की टीम मौके पर भेजी जाती है। यह टीम हाथियों के सिर, कान, पूंछ और पीठ की तस्वीरें लेती है। इन अंगों की तस्वीरों को आधार बनाकर कंप्यूटर पर उनकी विशिष्ट पहचान यानी आईडी तैयार की जाती है। इसके बाद हर हाथी को एक कोड नंबर दिया जाता है, जो “E-1”, “E-2” जैसे प्रारूप में होता है।
पता चल सकेगी जंगली हाथियों की सटीक संख्या
हाथियों की पहचान की इस प्रक्रिया से न केवल उनकी सटीक संख्या सामने आएगी, बल्कि उनकी लोकेशन, गतिविधियों और समूहों की निगरानी भी संभव हो सकेगी। इसके चलते हाथी मानव संघर्ष जैसी घटनाओं को कम करने में भी मदद मिल सकती है, क्योंकि समय रहते हाथियों की लोकेशन का पता लगाकर एहतियाती कदम उठाए जा सकेंगे।
तकनीक और शोध के बेहतर समन्वय का उदाहरण
बांधवगढ़ में शुरू हुई यह पहल न केवल मध्य प्रदेश बल्कि देशभर के अन्य वन्यजीव अभ्यारण्यों और टाइगर रिजर्वों के लिए एक मिसाल बन सकती है। यह परियोजना वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में तकनीक और शोध के बेहतर समन्वय का उदाहरण है।
उमरिया से बृजेश श्रीवास्तव की रिपोर्ट