भोपाल, डेस्क रिपोर्ट | मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में हो रहे विधानसभा (Assembly) के उप-चुनाव (By-election) में भाषा की मर्यादा को खूंटी पर टांगने में कोई भी राजनेता और दल ने हिचक नहीं दिखाई है। यही कारण रहा कि चुनाव प्रचार में उन शब्दों का प्रयोग करने में कोई भी पीछे नहीं रहा जिसे आमतौर पर लोग उपयोग करने से कतराते हैं। प्रचार का शोर थम गया है, अब प्रत्याशियों का भविष्य तय करेगी| प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, यह उपचुनाव विवादित बयानबाजी के लिए भी याद किया जायेगा|
बात कुत्ते तक पहुंच गई
राज्य के 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव हो रहे हैं इनमें 25 स्थान ऐसे हैं जहां उप चुनाव की नौबत दल बदल के कारण आई है, वही तीन स्थानों पर चुनाव विधायकों के निधन के कारण हो रहे हैं। दलबदल करने वालों को कांग्रेस की ओर से गद्दार करार दिया गया और यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। फिर बात भूखे नंगे की आई। महिला भाजपा उम्मीदवार इमरती देवी को तो कथित तौर पर आइटम ही बता दिया गया। चुनाव की तारीख करीब आने के साथ बयानों की तल्खी भी बढ़ती गई और कमतर शब्दों का भी खूब प्रयोग होने लगा। किसी को पापी कहा गया तो किसी उम्मीदवार को जमीन में गाड़ने की बात ही और अब तो बात कुत्ते तक पहुंच गई हैं।
भाजपा मुद्दा भटका रही – कांग्रेस
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अजय यादव (Congress Spoke Person Ajay Yadav) का कहना है कि भाषा की मयार्दा का ध्यान तो सभी को रखना चाहिए मगर उपचुनाव में भाजपा (BJP) ने मुददों को भटकाने के लिए निम्न स्तरीय भाषा का प्रयोग किया, मगर उनकी यह कोशिश नाकाम रहेगी। इस चुनाव में मुद्दा विकास और बिकाऊ है, जिसे भाजपा चाहकर भी नहीं बदल पाई है।
कांग्रेस ने आम जनता का ध्यान मुद्दों से हटाया – बीजेपी
भाजपा के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय (BJP Spoke Person Deepak Vijaywargiya) का कहना है कि कांग्रेस ने आम जनता का ध्यान मुद्दों से हटाने के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत इस तरह की भाषा का प्रयोग किया। भाजपा तो चाहती थी कि यह चुनाव भाजपा के 15 साल के शासन काल और कमल नाथ के शासनकाल को लेकर हो, बात मुद्दों की हो, मगर कांग्रेस के पास बताने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि 15 माह का शासनकाल लूट खसोट का शासनकाल रहा है।
राजनेताओं ने भाषा की मयार्दाओं को किया तार-तार
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा के चुनाव राज्य की सियासत में बदलाव लाने के साथ सत्ता के लिहाज से महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि राजनीतिक दलों ने भाषा की सारी मयार्दाओं को तार-तार कर दिया, चुनाव भले ही कोई जीत जाए, मगर यह उपचुनाव राज्य की शालीन और सोम राजनीति के लिए अच्छे तो नहीं माने जाएंगे।
राजनेताओं की भाषा को आमजन भी अच्छा नहीं मान रहे है। जनता का कहना हैं कि चुनाव में राजनेताओं और राजनीतिक दलों को अपनी बात कहनी चाहिए, बताना चाहिए कि उन्होंने अब तक क्या किया और आगे क्या करेंगे, मगर इस उप-चुनाव में ऐसे लगा मानों दोनों दलों के पास जनता को बताने के लिए कुछ नहीं है। यही कारण रहा कि वे निजी हमलों के साथ स्तरहीन भाषा का प्रयोग करते नजर आए।