बीजेपी का होगा ‘राज’ या कांग्रेस बनेगी ‘नाथ’, आइये जानते है मांधाता के मतदाताओं के विचार

Gaurav Sharma
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उपचुनाव

खंडवा,सुशील विधानी । मांधाता के उपचुनाव में अभी तक आपने एक्सपोर्ट्स को सुना, लेकिन अब मतदाताओं को भी सुनिए। आईये जानते है मतदाताओं की क्या है मंशा, कौन जीतेगा ? इन परिस्थितियों को देखें तो जातिवाद सब पर हावी है ! एक किसान अशोक शाह कहते हैं कि बिकाऊ और टिकाऊ का नारा कोई मायने नहीं रखता। कांग्रेस के प्रत्याशी के पिता का इतिहास बताते हुए वह कहते हैं कि टिकट नहीं मिला तब राजनारायण ने जो किया, वो कांग्रेस का विरोध नहीं था क्या ? आगे मतदाता कहते है कि दोनों ही प्रत्याशी अनुभवहीन है ।

 

इनके कंधे पर बंदूक रखकर चलाने वाले चाह रहे हैं कि अपना ही कैंडिडेट जीते, लेकिन ऐसा नहीं होगा । सत्ता पक्ष भी अपना वजूद रखती है । आरएसएस का संगठन का घर घर दरवाजों पर दस्तक देना शुरू हो गया है । यह चुनाव कब और कैसे किसको ऊपर उठा देगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस के लोग जरूर माहौल बनाने के लिए सड़कों पर ज्यादा संख्या में दिख रहे हैं, लेकिन मामला कभी भी बाजी पलट सकता है । इतना जरूर है कि चुनाव में हार 7000 के अंदर होगी।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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