जीत के बाद बोले सुरेश राजे, इसे 80,000 की ही जीत समझिये

Gaurav Sharma
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ग्वालियर,अतुल सक्सेना। मध्यप्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी को लगभग 8,000 वोटों से हराने वाले कांग्रेस के सुरेश राजे ने पलटवार करते हुए कहा कि इसे 8 नहीं 80,000 की ही जीत मानिये। गौरतलब है कि पूरे चुनाव के दौरान इमरती देवी ने दावा किया था कि सुरेश राजे 80,000 वोटो से हारेंगे। कांग्रेस प्रत्याशी उसी बात का जवाब मीडिया को दे रहे थे।

मध्यप्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में से एक ग्वालियर जिले के डबरा विधानसभा सीट से भाजपा की इमरती देवी चुनाव हार गई है। तीन बार की विधायक एवं प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीकी नेताओं में गिनी जाती है। ये वही नेता हैं जिन्होंने सिंधिया के कहने पर बिना कुछ सोचे मंत्री पद छोड़ दिया था और कांग्रेस छोड़कर सिंधिया के साथ चली गई थी। इमरती अपनी जीत को लेकर जितनी आश्वस्त थी उससे कहीं ज्यादा सिंधिया और भाजपा के नेता भी थे।

इमरती देवी ने चुनावों के दौरान कई बार कहा कि वे अपने प्रतिद्वंद्वी रिश्ते में समधी कांग्रेस के सुरेश राजे को 80,000वोटो से हरा देंगी लेकिन आज जब परिणाम सामने आये तो स्थिति बदल गई। सुरेश राजे ने इमरती देवी को 7633 वोटो से हरा दिया। मीडिया ने जब जीत के बाद सुरेश राजे से बात की तो उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि इस जीत को 8 हजार की नहीं 80,000 की जीत ही समझिये। ये आसान नहीं थी।

सिंधिया से जुड़े एक सवाल के जवाब में सुरेश राजे ने कहा कि उन्होंने खुद कहा था कि चुनाव इमरती नहीं लड़ रही थी वो खुद लड़ रहे थे। बहरहाल लगातार तीन चुनाव समधिन से हारने वाले समधी ने इस बार उन्हें हरा कर भाजपा को बड़ा झटका दिया है।

 


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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