Code of conduct: चुनाव आयोग ने पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के लिए विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है। भारत निर्वाचन आयोग ने सारी तैयारी पूरी करके आज सोमवार दोपहर 12 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विधानसभा चुनाव के तारीखों का एलान कर दिया। चुनावों की घोषणा के साथ ही अब इन राज्यों में आचार संहिता यानी कोड ऑफ कंडक्ट प्रभावी हो चुका है। जिसका सभी राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों को पालन करना अनिवार्य हो गया है। यहां इस खबर के जरिए हम विस्तृत रुप में आचार संहिता के बारे में आपको बतायेंगे कि आचार संहिता क्या होती है और कब लगाई जाती है। साथ ही इसके प्रभावी होने के बाद किन सरकारी कामों पर रोक लग जाती है और उल्लंघन करने पर चुनाव आयोग द्वारा क्या कार्रवाई की जाती है।
क्या होती है आचार संहिता
आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा तय की गई कुछ नियम और शर्तें होती हैं जिसे किसी भी चुनाव को निष्पक्ष और स्वतंत्र रुप से कराने के लिए क्षेत्र विशेष में लगाया जाता है। वहीं इसको लगाए जाने का उद्देश्य सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों को गलत फायदा उठाने से रोकना होता है। इन नियमों एवं शर्तों को सभी पार्टियों और प्रत्याशियों को पालन करना होता है।
कब लगाई जाती है आचार संहिता
भारतीय चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाती है। जिसका प्रभाव तब तक होता है जब तक चुनाव की प्रक्रिया पूरी न हो जाए।
आचार संहिता की मुख्य बातें
- आचार संहिता एक दिशा निर्देश है जिसे चुनाव की तारीखों का एलान करने के बाद लागू कर दिया जाता है। इसकी निम्नलिखित बातें इसे अहम बनाती है-
- इसके लागू होने के बाद सरकार पर कई तरह की पाबंदी लगा दी जाती है। जिसमें सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की नई योजनाओं और नई घोषणाओं पर रोक लग जाती है। यहां तक कि सरकार द्वारा किसी भी नए कार्य का भूमिपूजन या फिर लोकार्पण भी नहीं किया जा सकता है।
- सरकार द्वारा चुनाव की तैयारी के लिए सरकारी तंत्र का उपयोग करने पर रोक लगा दी जाती है। साथ ही सरकारी गांडी, बंगले और हवाई जहाज पर भी पाबंदी रहती है।
- आचार संहिता के लागू होने के बाद दीवारों पर लिखे गए सभी प्रकार के स्लोगन, प्रचार सामाग्री जैसे होर्डिंग, बैनर और पोस्टर को हटा लिया जाता है।
- राजनीतिक पार्टियों को राजनीतिक जलसे, रैली, चुनावी सभाओं और और जुलूस निकालने के लिए पुलिस से अनुमति लेनी पड़ती है।
- आचार संहिता के दौरान धार्मिक स्थलों, प्रतीकों का उपयोग और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाली बातों को करने पर रोक लगा दी जाती है।
- आचार संहिता के दौरान वोटरों को किसी भी प्रकार की रिश्वत नहीं दी जा सकती है। साथ ही किसी भी पार्टी और उम्मीदवार पर निजी आरोप प्रत्यारोपों पर रोक लगा दी जाती है।
- आचार संहिता के दौरान मतदान की तारीख से 24 घंटे पहले तक किसी भी प्रकार की शराब बोतले बांटने पर पाबंदी होती है।
- मतदान के दिन वोटरों को मतदान केंद्र पर लाने के लिए किसी भी प्रकार की मदद पर पाबंदी होती है।
आचार संहिता के उल्लंघन पर चुनाव आयोग की कार्रवाई
आचार संहिता के लागू होने के बाद राज्य में सेवारत सरकारी कर्मचारी जब तक चुनाव की प्रक्रिया पूरी न हो जाए चुनाव आयोग के कर्मचारी बन जाते है। कर्मचारी द्वारा आयोग के दिशा निर्देश के मुताबिक कार्य किया जाता है। क्षेत्र विशेष में लागू आचार संहिता के खिलाफ यदि कोई काम करता है तो चुनाव आयोग द्वारा उस पर कार्रवाई की जा सकती है। चुनाव आयोग प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोकने के साथ उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा सकता है। जिसके बाद यदि प्रत्याशी दोषी पाया जाता है तो उसे जेल जाना पड़ेगा।
आचार संहिता की कब हुई शुरुआत
आचार संहिता का प्रावधान सभी राजनीतिक पार्टियों की सहमति से लागू किया गया। आचार संहिता को लागू करने की शुरुआत सबसे पहले साल 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई। जिसमें प्रत्याशियों को क्या करना है क्या नहीं इसके बारे में बताया गया था। वहीं इसके बाद साल 1962 में पहली बार लोकसभा चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक पार्टियों को बताया गया है। गौरतलब है कि आचार संहिता को साल 1967 से लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भारतीय चुनाव आयोग ने सभी राज्य सरकारों से लागू करने के लिए कहा था। जिसके बाद से यह चलता चला आ रहा है। वहीं समय- समय पर चुनाव आयोग द्वारा नियमों और शर्तों को बदला भी जाता रहा है।