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Fri, Dec 5, 2025

भारत का वो गांव जहां सैकड़ों वर्षों से नहीं मनाई गई दिवाली, जानें इसके पीछे का दिलचस्प इतिहास

Written by:Sanjucta Pandit
कर्नाटक के इस गांव में दिवाली खुशी नहीं, मातम का दिन होती है। यहां 235 साल से लोग 'काली दिवाली' मनाते हैं। माना जाता है कि टीपू सुल्तान ने दिवाली की पूर्व संध्या पर 700 अयंगर ब्राह्मणों की हत्या करवाई थी।
भारत का वो गांव जहां सैकड़ों वर्षों से नहीं मनाई गई दिवाली, जानें इसके पीछे का दिलचस्प इतिहास

आज देशभर में दिवाली मनाई जा रही है। हर तरफ दीपों की रोशनी, मिठाइयों की खुशबू और पटाखों की गूंज से माहौल खुशियों से भर गया है। लोग अपने घरों में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा कर धन, सुख और समृद्धि की कामना कर रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा गांव भी है, जहां दिवाली का पर्व सिर्फ खुशियों का नहीं, बल्कि दुख और मातम का प्रतीक है? यहां सालों से लोगों ने इस खास मौके पर अपने घरों में दीपक नहीं जलाई है, अच्छे पकवान नहीं बनाते हैं। कोई भी यहां एक-दूसरे को बधाई नहीं देता है।

दरअसल, इस गांव का नाम मेलकोटे (मेलुकोटे) है, जो कि कर्नाटक में स्थित है। बता दें कि यहां की 235 साल पुरानी परंपरा आज भी लोगों द्वारा निभाई जा रही है।

‘काली दिवाली’

मेलकोटे गांव के लोग दिवाली के दिन खुशियों की जगह शोक मनाते हैं। इस दिन वे अपने पूर्वजों की मृत्यु की याद में मातम मनाते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि यह परंपरा टीपू सुल्तान के समय से चली आ रही है। उस समय टीपू सुल्तान ने लगभग 700 ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया था। इनमें से अधिकांश ब्राह्मण अयंगर समुदाय से जुड़े थे। इसी वजह से इस समुदाय के लोग दिवाली को पारंपरिक खुशियों के बजाय ‘काली दिवाली’ के रूप में याद करते हैं।

टीपू सुल्तान का क्रोध

इतिहासकारों के अनुसार, यह घटना हैदर अली और उनके पुत्र टीपू सुल्तान के शासनकाल में हुई थी। उस समय लक्ष्मी अम्मा नामक एक महारानी नजरबंद थीं। उन्हें प्रतिदिन केवल एक घंटे के लिए मंदिर में पूजा करने की अनुमति मिलती थी। इस पूजा के दौरान वे गुप्त संदेश मद्रास और पुणे भेजती थीं। यह संदेश तिरुमल राव और नारायण राव नामक दो ब्राह्मणों द्वारा पहुंचाए जाते थे, जो मंड्यम अयंगर समुदाय से थे। टीपू सुल्तान को जब इस काम के बारे में पता चला, तो उसने दोनों को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वे हर बार बच निकलते। इसी कारण टीपू सुल्तान का क्रोध इस समुदाय के प्रति और बढ़ गया।

कहा जाता है कि दिवाली से एक दिन पहले उसने लगभग 700 ब्राह्मणों को मित्र भोज में बुलाया, जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे। जैसे ही लोग भोजन के लिए बैठे… मंदिर के द्वार बंद कर दिए गए और हाथियों को अंदर छोड़ दिया गया। इस भयानक घटना में लगभग सभी लोग मारे गए।
इस दर्दनाक घटना के बाद से मंड्यम अयंगर समुदाय ने उस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। गांव के लोग आज भी दिवाली के दिन पूजा और उत्सव नहीं मनाते, बल्कि अपने पूर्वजों की याद में मौन, शोक और मातम का पालन करते हैं। यह परंपरा 235 साल पुरानी है और पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों को भी इसके बारे में बताया जाता है, ताकि इतिहास को भुलाया न जा सके।

मेलकोटे गांव की खासियत

मेलकोटे बेंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित है। भारत में हर जगह दिवाली को अलग-अलग तरीके से मनाने की परंपरा है। जहां एक तरफ देश के अधिकांश हिस्सों में दीप जलाए जाते हैं और मिठाइयां बांटी जाती हैं, वहीं मेलकोटे में यह दिन शोक और स्मृति का प्रतीक बन गया है। काली दिवाली के दिन लोग मंदिरों में जाते हैं, मौन साधते हैं और अपने पूर्वजों के लिए प्रार्थना करते हैं। कोई हर्षोल्लास नहीं, कोई आतिशबाजी नहीं होती। गांव में बच्चे और युवा भी इस परंपरा में शामिल होते हैं। इस दौरान उन्हें यह सिखाया जाता है कि इतिहास की पीड़ा को याद रखना भी हमारी संस्कृति का हिस्सा है।

यह परंपरा टीपू सुल्तान के उस काले अध्याय की याद दिलाती है, जब निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या कर दी गई थी। आज भी गांव के लोग इस दिन शांति और मौन के साथ अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)