एक जैसे काम और मेहनत के लिए एक जैसी सैलरी, जानें क्या है समान वेतन अधिनियम?

Right To Equal Pay: क्या एक जैसे काम के लिए अलग-अलग वेतन मिलना सही है? समान वेतन अधिनियम 1976 इसी असमानता को खत्म करने के लिए लाया गया था. यह कानून सुनिश्चित करता है कि पुरुष और महिला कर्मचारी, जो समान काम और मेहनत करते हैं, उन्हें बराबर का वेतन और अवसर मिले.

Bhawna Choubey
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Right To Equal Pay: पहले के ज़माने में ऐसा हुआ करता था की बहार के काम सिर्फ़ पुरुष ही किया करते थे. फिर चाहे वह पैसे कमाने का काम हो या फिर कुछ काम और ही क्यों न हो. आज के समय में महिलाएँ पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में समान रूप से काम कर रही है और घर की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने में मदद कर रही है.

लेकिन ऐसा देखा जाता है कि भारतीय समाज में आज भी कई वर्कप्लेस में महिलाएँ पुरुषों के बराबर काम करने के बावजूद भी समान वेतन नहीं पा रही है. इस मुद्दे के समाधान के लिए समान वेतन अधिनियम 1976 बेहद महत्वपूर्ण हैं. जिसे समझना हर महिला के लिए ज़रूरी है.

समान वेतन अधिनियम

ये अधिनियम महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन प्रदान करने का अधिकार देता है. इस अधिनियम के तहत महिलाओं को समान काम करने के लिए समान वेतन मिलना चाहिए, ताकि उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके और उन्हें समान अवसर मिल सके.

क्या होता है असमान वेतन

असमान वेतन तब होता है जब महिला कर्मचारी को एक जैसा ही काम करने पर पुरुष कर्मचारी से कम वेतन मिलता है. ये असमानता मुख्य रूप से महिलाओं के जेंडर के कारण पैदा होती है , जिससे उनके मेहनत और योगदान को सही तरीक़े से मान्यता प्राप्त नहीं होती है.

क्या है समान वेतन अधिनियम

समान वेतन अधिनियम , जो 1976 से पारित किया गया था महिलाओं को समानता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है. यह अधिनियम पुरुषों और महिलाओं को समान काम करने के लिए समान वेतन देने की गारंटी देता है. जिससे की महिला और पुरुष के बीच लैंगिक भेदभाव न हो.

समान वेतन अधिनियम के मुख्य प्रावधान

समान वेतन अधिनियम 1976 के तहत नियोक्ता को यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि पुरुष और महिला कर्मचारी को समान काम के लिए समान वेतन मिले.

इसके अलावा नियोक्ता को कर्मचारियों की भर्ती में लिंग आधारित भेदभाव नहीं करना चाहिए उन्हें योग्यता के अनुसार काम और वेतन मिलना चाहिए.

इस अधिनियम के अनुसार नियोक्ता को समान वेतन के साथ साथ समान भत्ते, प्रमोशन , ट्रेनिंग और ट्रांसफर की सुविधा भी प्रदान की जानी चाहिए.

इस अधिनियम के अनुसार महिलाओं के लिए यह भी सुनिश्चित करना चाहिए , कि उन्हें शाम 7 सुबह से सुबह 6 बजे तक काम पर नहीं बुलाया जा सकता. अगर रात में काम करना ज़रूरी है तो उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी नियोक्ता की होगी.

इसके अलावा कोई भी कंपनी अकेली महिला कर्मचारियों को काम पर नहीं बुला सकती है और महिला कर्मचारियों के लिए क्रेज की सुविधा और बच्चों को फ़ीड कराने का अधिकार भी सुनिश्चित करना चाहिए.

अगर किसी भी कम्पनी के द्वारा इस अधिनियम का उल्लंघन किया जाता है तो महिला कर्मचारी इसे लेकर शिकायत दर्ज कर सकती है.


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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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