सुप्रीम कोर्ट ने आर्य समाज की ओर से जारी विवाह प्रमाण पत्र सुनाया बड़ा फैसला, जानें क्या है कहा

Amit Sengar
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नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। आर्य समाज की ओर से जारी विवाह प्रमाण पत्र के मामले पर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया है, और शीर्ष कोर्ट ने कानूनी मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया है, बता दें कि जस्टिस जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीबी नाग रत्ना की पीठ ने कहा कि आर्य समाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है, विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का काम तो सक्षम प्राधिकरण ही करते हैं, कोर्ट के सामने असली प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाए।

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आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत दी, तब जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने आर्य प्रतिनिधि सभा से स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की धाराओं 5, 6, 7 और 8 प्रावधानों को अपनी गाइड लाइन में महीने के अंदर अपने नियमन में शामिल करने के लिए भी कहा गया।

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गौरतलब है कि यह मामला प्रेम विवाह का बताया जा रहा है, जबकि लड़की के घरवालों ने अपनी लड़की को नाबालिग बताते हुए पुलिस में अपहरण और रेप जैसे मामले में एफ आई आर दर्ज करा रखी थी और लड़की के घरवालों ने युवक के खिलाफ पोक्सो एक्ट की धारा के तहत मामला दर्ज करवाया गया।

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वही इस मामले में युवक ने कहा कि लड़की बालिक है उसने अपने स्वयं के विवेक और अधिकार से विवाह का फैसला किया है, आर्य समाज मंदिर में विवाह हुआ, सुप्रीम कोर्ट के सामने युवक ने मध्य भारतीय आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से जारी विवाह प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया।

आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट का इतिहास
अंग्रेजों ने आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट को साल 1937 में पारित किया था। भारत में दूसरी जाति में शादी करने की इजाजत नहीं होने की वजह से कई लोगों ने आर्य समाज को अपनाया शुरू किया, क्योंकि यहां उनके साथ जाति के नाम पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता था। और वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार होने वाली आर्य समाज की शादी को वैधता देने के लिए आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट लाया गया। जिसमें वर-वधू के अलग-अलग जाति के होने पर भी उनके विवाह को मान्यता दी जाने लगी, इस एक्ट में यह भी साफ लिखा गया था कि अगर वर-वधू शादी से पहले हिंदू के अलावा किसी अन्य धर्म से होंगे तब भी उनका विवाह अमान्य नहीं माना जाएगा। यह एक्ट आज भी भारत में लागू है जिसे सभी आर्य समाज मंदिर अपनाते हैं।


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