भारतीय रेलवे (Indian Railways) का इतिहास कई दशक पुराना है। शुरुआत में इसका इस्तेमाल केवल सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसे यात्रियों के लिए भी चलाया गया। यह सबसे सस्ता माध्यम है, जिसमें लोग आराम से अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। हजारों यात्री रोजाना एक स्थान से दूसरे स्थान ट्रेन से जाते हैं। इस दौरान उन्हें विभिन्न राज्यों के कल्चर को नजदीक से जानने का भी मौका मिलता है।
भारतीय रेल नेटवर्क को विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क माना गया है, जहां से रोजाना 1200 से अधिक ट्रेन संचालित होती हैं, जो देश के हर एक कोने के लिए चलाई जाती है। वहीं, जनसंख्या के आधार पर और ट्रेन के अनुसार स्टॉपेज भी दिए जाते हैं।

नियमों में किया जाता है बदलाव
भारतीय रेलवे द्वारा लगातार यात्रियों को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए नियमों में बदलाव किए जाते हैं। पहले की अपेक्षा अब लोगों को अत्याधुनिक सुविधा दी जाती है। रेलवे प्लेटफार्म पर रिनोवेशन का काम कराया जा रहा है। एक के बाद एक लगातार नई-नई ट्रेनें चलाई जा रही है, जिससे लोगों के समय की बचत होती है। साथ ही टिकट के लिए मारामारी नहीं करना पड़ता है।
हावड़ा कालका मेल
आज हम आपको भारत की सबसे पुरानी ट्रेन के बारे में बताएंगे, जो कि आज भी चलती है। इस ट्रेन का इतिहास 150 साल पुराना है, जो कि आज भी सबसे डिमांडिंग ट्रेन है। इस ट्रेन का नाम हावड़ा कालका मेल है, जो सबसे पुरानी ट्रेन है। जिसे 158 साल पहले शुरू किया गया था। यह पश्चिम बंगाल की राजधानी हावड़ा से चलती है और हरियाणा के पंचकुला जिले में स्थित कालका रेलवे स्टेशन पहुंचती है, जहां से यात्री शिमला, चंडीगढ़, अमृतसर, आदि के लिए आगे की ओर प्रस्थान करते हैं। इस ट्रेन में गर्मी के समय यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है, क्योंकि लोग गर्मी की छूट्टियों में अक्सर अपने परिवार, मित्र और पार्टनर के साथ शिमला, मनाली घूमने का प्लान बनाते हैं। इसके लिए हावड़ा-कालका रुट में पड़ने वाले स्थानों के लोग इस ट्रेन में पहले से ही सीट बुक कर लेते हैं, ताकि गंतव्य तक पहुंचने में परेशानी ना हो।
1866 को गई थी चलाई
पहले इस ट्रेन को हावड़ा से दिल्ली के बीच चलाया गया था। उस समय ट्रेन का नाम ईस्ट इंडियन रेलवे मेल था। जिसका नंबर 1 अप और दिल्ली से चलने वाली ट्रेन का नंबर 2 डाउन था, जो 1 जनवरी 1866 को चली थी। बाद में लोगों के डिमांड के बाद साल 1891 में इसे दिल्ली से बढ़कर कालका तक के लिए कर दिया गया। वहीं, अब इसका नाम बदलकर नेताजी एक्सप्रेस रख दिया गया है। यह पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसे नंबर दिया गया था। अंग्रेजों के लिए यह ट्रेन बेहद खास थी क्योंकि ब्रिटिश वायसराय और हाई रैंकिंग अधिकारी इसी ट्रेन से सफर किया करते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, किराये की बात की जाए तो आम यात्रियों के लिए यह ना के बराबर थी। इसलिए लोग धीरे-धीरे ट्रेन को सफर को सस्ता और सुगम मानने लगे। बाद में जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी का विकास होता गया, वैसे-वैसे रेलवे का विस्तार किया गया।