World Violin Day 2023 : विश्व वायलिन दिवस पर पढ़िए कुछ अनसुनी सुमधुर कहानियां

Violin

World Violin Day 2023 : आज विश्व वायलिन दिवस है। हर साल 13 दिसंबर को ये दिन मनाया जाता है। आज के खास दिन हम आपके लिए लाए हैं वायलिन की धुन से कुछ सुमधुर किस्से, जिन्हें अपने शब्दों से सजाया है उत्तर प्रदेश सरकार में प्रशासनिक अधिकारी और लेखक श्री प्रशांत द्विवेदी ने।

“विश्व वायलिन दिवस”

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वायलिन के साथ याद आता है विलक्षण प्रतिभा वाला 13 साल का एक बच्चा (child prodigy), 1929 में बर्लिन के एक कंसर्ट में वायलिन बजाता एक बच्चा। उस कंसर्ट के ऑडिअन्स में एक नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक भी शामिल था। कंसर्ट ख़त्म होने पर वह वैज्ञानिक स्टेज पर आया और उस बच्चे को चूमकर बोला, “चमत्कार कभी ख़त्म नहीं होते, आज मुझे एहसास हुआ कि स्वर्ग में ईश्वर बसता है।”
वह बच्चा था – सदी का महानतम् वायलिन वादक – “येहुदी मेनुहिन” और वह वैज्ञानिक था विश्व का महानतम वैज्ञानिक – “अल्बर्ट आइंस्टाइन”
याद आता है इंग्लैंड के काउंटी ऑफ़ समरसेट का शहर बाथ – सन 1967 “वेस्ट मीट्स ईस्ट” कंसर्ट। वायलिन माइस्ट्रो येहुदी और सितार वर्चूओसो पंडित रविशंकर की जुगलबंदी। जिसके लिए पंडित रविशंकर को उनका पहला ग्रैमी मिला। एशिया के किसी भी पहले व्यक्ति को।
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पुनः, याद आते हैं आइंस्टाइन और उनकी वायलिन जिसको वो प्यार से “लीना” बुलाते। विज्ञान की गूढ़ गुत्थियों को सुलझाते हुए वे अचानक से उठ खड़े होते और वायलिन या पियानो पर कोई सुर छेड़ देते और फिर थोड़ी देर बाद काम पर लग जाते। एक बार उन्होंने वायलिन पर मोत्ज़ार्ट के सोनाटा को प्ले करते हुए कहा था, “मोत्ज़ार्ट का संगीत इतना विशुद्ध और उत्कृष्ट है कि इसमें मैं ब्रह्माण्ड की आत्मा की सुंदरता का प्रतिबिम्ब देखता हूँ”
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याद आते हैं डूबते हुए टाइटैनिक पर सवार बैंड मास्टर वैलेस हार्टले। वायलिन बजाते हुए। अपने बैंड के आठों सदस्य समेत मौत की आगोश में समाते हुए। बाद में जब हार्टले का शव मिलता है तो उनके सीने पर रखा हुआ वायलिन याद आता है।
इसी के साथ याद आता है अमेरिकन लेडी वायलिन वादक टेलर डेविस के वायलिन कवर और सलीन डिओन की आवाज़ में “टाइटैनिक” का थीम साउंडट्रैक “माय हार्ट विल गो ऑन”
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याद आती है ‘शिंडलर्स लिस्ट’ फ़िल्म के लिए जॉन विलियम्स और इत्ज़ाक पर्लमैन द्वारा तैयार की गई वह अमर धुन। होलोकास्ट से बच निकले नामों की लिस्ट के साथ बैकग्राउंड में बजता हुआ वायलिन। ‘होप और सर्वाइवल’ का संगीत। ऐसी अमर धुन जो कि सार्वकालिक महानतम फ़िल्म-थीम-साउंड बन गई। मेलोडी की एक लम्बी दास्ताँ में भावनाओं और आंसुओं के रिदम का एक अद्भुत सम्मिश्रण…
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याद आते हैं वर्तमान समय के महान वायलिन वादक “जोशुआ बेल” और 1713 ई० का उनका एंटीक (पुरातन) वायलिन- “गिब्सन स्ट्रेडीवेरियस” और याद आता है ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ द्वारा जोशुआ बेल और उनके वायलिन पर किया गया एक सामाजिक प्रयोग।
जनवरी 2007 की सुबह वॉशिंगटन डीसी का एक सबवे मेट्रो स्टेशन।

जोशुआ बेल वहाँ पर वेशभूषा बदल कर एक गुमनाम आदमी के रूप में लगभग 45 मिनट तक वायलिन बजाते रहे। इस दौरान वहाँ से लगभग 1100 लोग गुज़रे लेकिन उन्हें सुनने के लिए केवल 7 ही लोग रुके। और केवल एक महिला ने उन्हें पहचाना। कुल मिलाकर 27 लोगों ने उन्हें 32 डॉलर दिया। जबकि जोशुआ उस समय जो वायलिन बजा रहे थे उसकी वर्तमान कीमत लगभग 1 अरब रूपये है। इस प्रयोग के मात्र तीन दिन पहले ही जोशुआ ने बोस्टन शहर में एक कंसर्ट किया था जहाँ के लिए एंट्री-टिकट्स की शुरुआत ही 100 डॉलर से थी।

यह घटना बताती है कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वायलिन वादकों में से एक “जोशुआ बेल” जब गुमनाम शख़्स के रूप में, एक सार्वजनिक जगह पर एक बेहतरीन साज़ बजा रहे थे तो अपने में व्यस्त दौड़ती-भागती दुनिया उन्हें पहचान ही नहीं पाई। यह प्रयोग बताता है कि खुद में ही उलझी हुई यह दुनिया, बिना चेहरे और नाम के न जाने कितनी खूबसूरत चीज़ों से दिन-प्रतिदिन वंचित होती रहती है।
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याद आता है ब्राज़ील के रियो शहर में रहने वाले म्यूज़िकल टीचर ‘इवैन्ड्रो जोअ ड सिल्वा’ और 12 साल का उनका स्टूडेंट- ‘डिएगो’
याद आता है इवैन्ड्रो की हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार के अवसर पर वायलिन बजाता डिएगो। याद आता है आँसुओं से भीगा हुआ डिएगो का चेहरा।
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और फिर अंत में याद आती है फ़िल्म “मोहब्बतें”। लकड़ी की एक कुर्सी बैठे, कंधे पर खुली आस्तीनों वाला एक स्वेटर डाले राज आर्यन। सब कुछ भूलकर वायलिन पर एक धुन छेड़ते हुए…और बैकग्राउंड में उड़ते हुए मेपल के पत्ते। यह एक ‘कल्ट सीन’ था। इसके बाद गली-मुहल्लों में लोग वैसे ही वायलिन सीखना शुरू कर दिए थे जैसे DDLJ के बाद लोगों के कंधे पर झूलते हुए गिटार का फ़ैशन चल पड़ा था।
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याद आता है वायलिन की 4 स्ट्रिंग्स पर स्ट्राइक करती हुई वायलिन बो (bow) के हर एक स्ट्रोक से निकलती धुन का सीधे आत्मा को छूती हुई ईश्वर से साक्षात्कार कराना….

(प्रशांत द्विवेदी की फेसबुक वॉल से साभार)


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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