पायलट बनने के सपने पर लगा गरीबी का ग्रहण, युवक को नहीं मिल रही शासन-प्रशासन से कोई मदद

Gaurav Sharma
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बैतूल, वाजिद खान। आसमान में उड़ने का जो ख्वाब उसने बचपन में देखा था वो अब टूटने की कगार पर है। उसकी पढ़ाई में घर बिक गया,जमीन बिक गयी और कर्ज का बोझ बूढ़े रिटायर पिता पर अभी भी चढ़ा हुआ है। यह दास्तान उस युवा की है जो बीते दो साल से पायलट की ट्रेनिंग का आधा हिस्सा पूरा करने के लिए भटक रहा है। हम यहां बात मध्य प्रदेश के बैतूल के उस युवा की कर रहे है जो पायलट बनने का ख्वाब संजो रहा था लेकिन हताश होकर एक मोबाइल रिपेयरिंग शॉप पर नौकरी कर रहा है।

23 साल का रामकुमार पटने का बचपन से पायलट बनने का ख्वाब था। इसके लिए उसने दिन रात कर खूब पढ़ाई की। यहां तक कि मुंबई स्थित स्काई लाईन एविएशन क्लब से पायलट बनने के लिए पार्ट वन की सारी थ्योरी में पूरी कर ली, लेकिन अब पेंच उसके पार्ट टू यानि प्रेक्टिकल फ्लाइंग पर आ फंसा है। यह ट्रेनिंग अमेरिका स्थित शिकागो में होना है। लेकिन उसके पास इसके लिए फूटी कौड़ी नही है।

शिक्षक पेशे से रिटायर हुए राम के  पिता उसकी पढ़ाई और बेटी की शादी के लिए  घर और जमीन तक बेच चुके है। अब शिकागो जाने के लिए उसे 60 हजार डॉलर की दरकार है।जो भारतीय रुपयों में करीब 44 लाख रुपये होता है। इस ट्रेनिंग के लिए राम को अमेरिका का वीजा मिल चुका है। भारतीय डीजीसीए उसका मेडिकल एप्रुव कर चुका है।सारे दस्तावेज दो साल से तैयार है लेकिन वो तब से लगातार भटक रहा है।  प्रदेश में दो मुख्यमंत्री बदल गए,कई कलेक्टर बदले लेकिन उसकी समस्या जस की तस है। राम के मुताबिक नेताओं के वादे सुन सुनकर वह थक चुका है लेकिन उसने हार नहीं मानी है।

वह चाहता है कि एमपी सरकार, गुजरात सरकार की तरह एजुकेशन लोन की व्यवस्था करे, जिसमे युवा के दस्तावेज जमा होते ही उसे 25 लाख का लोन मिल जाता है। जबकि प्रदेश में साढ़े चार लाख के ऊपर के लोन पर जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ती है। राम की माँ पुष्पा को उम्मीद है कि बेटा काम करेगा तो सारे कर्ज चुका देगा जबकि रिटायर पिता को लगता है कि बेटा एक दिन नाम कमाएगा।

युवक राम कुमार का कहना है कि बचपन से ही पायलट बनने का शौक था, इसके लिए पिताजी ने पूरा सहयोग किया। पढ़ाई की इसकी ट्रेनिंग दो पार्ट में होती है। एक ट्रेनिंग मैंने मुंबई से कर ली है, दूसरी ट्रेनिंग अमेरिका के शिकागो से होना हैं, लेकिन पैसों की कमी आड़े आ गई है। 2 साल से भटक रहा हूं। सभी जगह मदद की गुहार लगा दी, लेकिन कोई मदद नहीं मिल रही है।

युवक के पिता हेमराज का कहना है कि मेरे पास कुछ बचा नहीं है, पहले बेटे की पढ़ाई के लिए कर्ज लिया था उसके बाद बच्ची की शादी और मकान बनाने के लिए कर्ज लिया था जिसे चुकाने के लिए मकान खेत बेच दिया है, अब मेरे पास पैसे नहीं है। मैं चाहता हूं कि बेटे को मदद मिल जाए तो उसका सपना साकार हो जाए।

युवक की माँ पुष्पा का कहना है कि मेरे बेटे ने अपना सपना साकार करने के लिए दिन रात मेहनत कर पढ़ाई की। हम लोगों ने खेत बेच दिया है लेकिन कुछ नहीं हो पाया हमारे पास कुछ बचा नहीं है जो कर्ज लिया था वह चुका दिया।

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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