इंदौर में अमरूद पर पड़ी लॉक डाउन की मार, बिक्री हो चली बेजार

Gaurav Sharma
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इंदौर, आकाश धोलपुरे। मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में इन दिनों मंडी से लेकर सड़को तक पर जाम दिख रहे है। दरअसल, इसकी बड़ी वजह ये है कि सेहतमंद रखने वाले अमरूद की पैदावार इस वर्ष जोरदार हुई है और यही वजह है कि सर्दी के बढ़ते सितम के बावजूद ठंडी तासीर के जाम देखने को मिल रहे है। कब्ज, पित्त की समस्या को शरीर से दूर करने वाले और विटामिन सी की मात्रा को शरीर में पर्याप्त रखने वाले रामबाण अमरूद याने की जाम की कारोबारी स्थिति पर जाम लगा हुआ है।

दरअसल, जाम की लोकल पैदावार और गुजरात व निमाड़ से आने वाले थाईलैंड की किस्म के जाम की आवक प्रदेश की सबसे बड़ी फल मंडी में बंपर हो रही है। इसी वजह से इंदौर में पिछले साल के मुकाबले इस साल जाम के दाम, आम हो चले है। इस वर्ष थोक बाजार में लोकल जाम 3 रुपये से 15 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल रहे है। वही दूसरी ओर बाहरी आवक बढ़ने के बाद टॉप क्वालिटी के जाम 15 से 35 रुपये किलो तक बिक रहे है। हालांकि सड़को पर जाम के दाम भले 2 से 5 रुपए प्रतिकिलो के मुनाफे पर बेचे जा रहे है। इसी का परिणाम है कि जाम का कारोबार 60 प्रतिशत तक ठप पड़ा हुआ है।

थोक व्यापारी अशोक सभरवाल की माने तो कोरोना की वजह से लगे लॉक डाउन और भय के माहौल के चलते इस साल कारोबार ठंडा पड़ा हुआ है। इधर, फल विक्रेता विकास भवानी के मुताबिक शहर में जाम की जबर्दस्त आवक है और मांग कमजोर है। ऐसे में दाम गिरना स्वभाविक है। वही व्यापारी ये भी मान रहे है कि बढ़ती सर्दी और रात 8 बजे से लगने वाले कर्फ्यू के कारण जाम का कारोबार न के बराबर है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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