तो हमें इच्छा मृत्यु की दे अनुमति ,शिक्षक पात्रता परीक्षा के चयनित अभ्यार्थियों ने सौंपा ज्ञापन

Gaurav Sharma
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बालाघाट,सुनील कोरे। 2011 के बाद सितंबर 2018 में सरकार द्वारा निकाली गई शिक्षक पात्रता परीक्षा में चयनित अभ्यार्थी, सरकार द्वारा रोकी गई दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया को प्रारंभ नहीं किये जाने से खासे आक्रोशित है। सरकार द्वारा कोरोना की आड़ लेकर चयनित अभ्यार्थियों की रोकी गई दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया से भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ से आक्रोशित अभ्यार्थियों ने अब राज्यपाल से इच्छा मृत्यु की मांग की है। शुक्रवार को ओबीसी महासभा जिलाध्यक्ष सौरभ लोधी नेतृत्व में शिक्षक पात्रता परीक्षा में चयनित अभ्यार्थियों ने दस्तावेज प्रक्रिया को शीघ्र प्रारंभ नहीं किये जाने पर खराब हो रहे भविष्य को देखते हुए इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग को लेकर राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा है।

चयनित अभ्यार्थियो ने देश में हो रही नीट और जेईई की परीक्षा, महाविद्यालय में विद्यार्थियों के प्रवेश सहित राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों का हवाला देते हुए सवाल खड़ा किया कि जब कोरोना काल में यह सब संभव है, तो फिर क्यों चयनित अभ्यार्थियों के दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया को कोरोना के नाम से लटकाने का काम किया जा रहा है?
शिक्षक पात्रता परीक्षा में चयनित वैभव रायतेकर ने कहा कि पूरे प्रदेश में 17 हजार उच्च माध्यमिक तथा 11 हजार माध्यमिक चयनित शिक्षक है। प्रदेश में 8 पश्चात शिक्षक भर्ती परीक्षा निकली थी, जिसमें भी 2 साल बाद भी आज तक शिक्षकों की भर्ती नहीं हो सकी है। कोरोना की आड़ लेकर चयनित शिक्षकों की दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया को रोक दिया गया है। जिससे पूरे प्रदेश सहित जिले के चयनित शिक्षक मानसिक रूप से स्वयं को प्रताड़ित महसुस कर रहे है, जब माननीय सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन के आधार पर जेईई और नीट की परीक्षायें आयोजित की जा सकती है और उन्हें निजी परिवहन के माध्यम से शामिल होने के निर्देश जारी किये गये है तो फिर चयनित शिक्षको के लिए ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है, हमें लगता है कि प्रदेश की सरकार शिक्षक भर्ती में चयनित अभ्यार्थियों को नौकरी पर ही नहीं रखना चाहती है। हमारी मांग है कि हमारे भी गाइड लाइन बनाई जायें या फिर हमें इच्छामृत्यु की अनुमति प्रदान की जाये।

चयनित अभ्यार्थी सुनील बिसेन ने कहा कि अब सरकार की अनदेखी असहनीय हो गई है और अभ्यार्थी मजबूरीवश अपने भविष्य को लेकर सरकार के खिलाफ खड़े हो रहे है, शिक्षक पात्रता परीक्षा में चयनित अभ्यार्थियों की स्थिति न घर के न घाट की कहावत की तरह हो गई है। एक ओर सरकार नौकरी नहीं दे रही है तो दूसरी ओर निजी विद्यालय उन्हें शिक्षक की नौकरी देने से मना कर रहे है। ऐसी स्थिति में शिक्षित अभ्यार्थी के पास केवल जीवन लीला समाप्त करने के अलावा कोई और अन्य साधन नहीं बचा है। दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया में कोरोना और परिवहन की समस्या बताकर प्रक्रिया को रोक दिया गया है। यह चिंतनीय है कि प्रदेश के लगभग 28 हजार चयनित अभ्यार्थियों को लेकर प्रदेश सरकार असंवेदनशील रवैया दिखा रही है, आज हम सोचने पर विवश है कि आखिर हमने प्रदेश का कैसा राजा चुना है, जिनके कानों में अभ्यार्थियों की आवाज जाने के बाद भी जूं नहीं रेंग रही है।

चयनित महिला अभ्यार्थी रूपाली गोस्वामी ने कहा कि चयनित अभ्यार्थियों की दस्तावेज प्रक्रिया को कोरोना का बहाना कर रोक दिया गया। जबकि जेईई और नीट जैसी परीक्षाओं के अलावा महाविद्यालय में विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जा रहा है तो फिर हमारी दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया को क्यों रोका जा रहा है? उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों में जिस तरह शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में वहां की सरकार ऐफिडेविट लेकर नियुक्ति दे रही है, वैसे ही प्रदेश में सरकार चयनित शिक्षक अभ्यार्थियों के साथ करें और हमें नियुक्ति प्रदान करें। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं किया जाता है तो आगामी 5 सितंबर शिक्षक दिवस पर ओबीसी महासभा के नेतृत्व में जिले में जिले के सभी चयनित अभ्यार्थी उग्र आंदोलन करेंगे।

ओबीसी महासभा जिलाध्यक्ष सौरभ लोधी ने कहा कि एक बार फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा के चयनित अभ्यार्थी, सरकार से दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया को प्रारंभ करने की मांग को लेकर आये है और प्रक्रिया प्रारंभ नहीं किये जाने पर इच्छा मृत्यु दिये जाने की मांग कर रहे हैं। अभ्यार्थी विगत दो माह से लगातार सरकार का ध्यान विभिन्न माध्यमो से आकर्षित कराने का प्रयास कर रहे है। लेकिन सरकार की अभ्यार्थियों को लेकर कोई सहानुभूति दिखाई नहीं दे रही है। जिससे आक्रोशित अभ्यार्थी, आगामी 5 सितंबर शिक्षक दिवस को काला दिवस के रूप में मनाते हुए उग्र आंदोलन करने का ऐलान कर चुके है। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन केवल शिक्षक पात्रता परीक्षा में चयनित अभ्यार्थियों का नहीं है, बल्कि जिले के हर बेरोजगार का आंदोलन है। जिसमें उन्होंने जिले की सभी युवा शक्ति, जागरूक शक्ति, मातृशक्ति शामिल होने की अपील की है।

राज्यपाल से इच्छामृत्यु की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपने पहुंचे अभ्यार्थियों में गुलशन शरणागत, संतोष परिहार, सुनील बिसेन, गौतम गजभिये, आरिफ खान, आशीष बारमाटे, शबाना कुरैशी, विद्या बिसेन, माधुरी मेश्राम, शारदा फुलबांधे, प्रीति खंडकार, प्रमोद बोरकर, दुर्गेश ऐड़े, भारती कावड़े, किर्तीबाला फुंडे, क्षमा वराड़े, नवीन मंडाले, आशीष गढ़पाल, सुनील ऐड़े, विकास बारिक, देवश्री चौधरी, वर्षा भौतेकर, ज्योति ठाकरे, शिव भानु भगत, अश्विनी पटले, सुनील खरे, सुनील बोहने, आशीष पटले, भारती महाजन, लुकेन्द्र शिव, मीना बिसेन, मिताली चौरसिया, निखिल रामटेके, तारेश वल्के, रानी इड़पाचे, गुरूतत्व राणा, रीना पटले, वैशाली भौरगढ़े, परमेश्वरी हरदे, सूर्यपाल मेश्राम, साधना पटले, सुखचंद चौधरी, वर्षा उके, सुनील साकरे, जितेन्द्र पटले, आकाश वरकड़े, ताराचंद गजभिये, सुनीता फुलबांधे, मोहनीश पिछोड़े, सहित अन्य अभ्यार्थी उपस्थित थे।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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